Book Title: Gommatasara Karma kanda
Author(s): Nemichandra Siddhant Chakravarti, Jawaharlal Shastri
Publisher: Shivsagar Digambar Jain Granthamala Rajasthan

View full book text
Previous | Next

Page 826
________________ गोम्मटसार कर्मकाण्ड-७८७ ३० कोड़ाकोड़ीसागरकी पंक्तिमें पूर्वोक्तप्रकार जोड़नेसे कुछकम तिगुने पल्यके अर्धच्छेदोंका सातवाँभागप्रमाण हुआ सो यह नानागुणहानिराशि का प्रमाण है। इसकी सहनानीके लिये गुणकार आठसे गुणा करना और आठका ही भाग देना तथा गुणकार में से एक पृथक रखा तो अवशेष गुणकार ७ रहा और पहले भागहार भी सात कहा था. इन दोनों का अपवर्तन करनेसे कुछकम तिगुना पल्यके अर्धच्छेदोंका आठवाँभाग हुआ। इसमें पल्यके अर्धच्छेदोंके ८वाँ भागप्रमाण अर्थात् तिगुने में से एक गुणा प्रमाण दो के अंक लिखकर परस्पर गुणाकरे सो यह पल्यका तृतीयवर्गमूल हुआ और शेष दोगुणे प्रमाण दो के अङ्क लिखकर उनका परस्पर गुणा करने पर पल्यका द्वितीयवर्गमूल होता है। इनको परस्पर गुणा करनेपर पल्यके तृतीयवर्गमूलसे गुणित पल्यका दूसरावर्गमूल प्राप्त होता है सो इसमें कुछ कम करना तथा जो एक गुणकार पृथक् रखा था वह गुणकार कुछकम तिगुना पल्यके अर्धच्छेदोंके ५६वाँ भाग प्रमाण था अत: उतनी बार दो के अङ्क लिखकर परस्पर गुणा करनेसे यथायोग्य असंख्यात प्राप्त हुआ। इससे गुणा करे तो असंख्यातगुणा कुछकम पल्यके तृतीयवर्गमूलसे गुणित पल्यका दूसरा वर्गमूल प्राप्त होता है। सो इतने प्रमाण ३० कोडाकोडासागर स्थिति में सोन्याभ्यस्तराशि होती है। इसीप्रकार ४० कोड़ाकोड़ी आदि स्थितियोंमें अन्योन्याभ्यस्तराशिका प्रमाण जानना चाहिए। तथा विरलिदरासीदो पुण जेत्तियमेत्ताणि हीणरूवाणि । तेसिं अण्णोण्ण हदी हारो उप्पण्णरासिस्स ।।' इस सूत्रके अनुसार जितने हीनरूप (ऋणरूप) थे उतनेप्रमाण परस्परमें गुणा करनेपर जो राशि हो वह उत्पन्नराशिका भागहार होता है अत: पल्यकी वर्गशलाकाके अर्धच्छेद प्रमाण दोके अङ्क लिखकर परस्पर गुणा करनेसे पल्यकी वर्गशलाका होती है तो इस पल्यकी वर्गशलाकासे होन पल्यप्रमाण आपोन्पा परतराशि है। इस प्रकार स्थितिकी अपेक्षा नानागुणहानि व अन्योन्याभ्यस्तगशि कही सो जिस कर्मकी जितनी स्थिति हो उससम्बन्धी अन्योन्याभ्यस्तराशि यथायोग्य जानना। आगे स्वयं आचार्य ज्ञानावरणादि मूलकर्मप्रकृतियोंकी अन्योन्याभ्यस्तराशि को बताते आवरणवेदणीये, विग्घे पल्लस्स बिदियतदियपदं । णामागोदे बिदियं, संखातीदं हवंतित्ति ॥९३८ ।। आउस्स य संखेजा, तप्पडिभागा हवंति णियमेण । इदि अत्थपदं जाणिय, इठिदिस्साणए मदिमं ।।९३९॥ १. त्रिलोकसार गाथा. ११५ ।

Loading...

Page Navigation
1 ... 824 825 826 827 828 829 830 831 832 833 834 835 836 837 838 839 840 841 842 843 844 845 846 847 848 849 850 851 852 853 854 855 856 857 858 859 860 861 862 863 864 865 866 867 868 869 870 871