Book Title: Gommatasara Karma kanda
Author(s): Nemichandra Siddhant Chakravarti, Jawaharlal Shastri
Publisher: Shivsagar Digambar Jain Granthamala Rajasthan
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गोम्मटसार कर्मकाण्ड-७८५
प्रमाणराशि
फलराशि
इच्छाराशि
लब्ध
सागर
७० कोडाकोड़ी- | पल्यके ७-८-९वें, वर्गमूलोंके १० कोढ़ाकोड़ी-| प. अर्धच्छेद सागर | | अर्धच्छेदोंका जोड़ प.छेne
सागर | ८८४८ ७० कोडाकोड़ी- | पल्यकी वर्गशलाका के छठे, सातवें, | १० कोड़ाकोड़ी-| पल्यकी वर्गसागर आठवें वर्ग के अर्धच्छेदों का जोड
सागर शलाका के अर्ध. व. छे. ८४८४७
व.छे. १४८४८ ३० कोड़ाकोड़ी- | पल्यफी काशलाकाके थे, चोड़ाई मल्य की सागर ५वें बॉके अर्थडेदोका जोड
व.श,के अर्ध व.छे. ७५८
व. छे. १४८ ७० कोड़ाकोड़ी- | पल्यकी वर्गशलाका तथा वर्गशलाका | १० कोड़ाकोड़ी. | पल्यकी वर्ग आदिधन . सागर के प्रथम वर्ग व द्वितीय वर्ग के
श.के अर्धच्छेद अर्धच्छेदों का जोड़ व.छ.४७
= व.छे.. अथानन्तर २० कोड़ाकोड़ीआदि स्थितिसम्बन्धी नानागुणहानि और अन्योन्याभ्यस्तराशि कहते हैं
इगिपंतिगदं पुध पुध, अप्पिटेण य हदे हवे णियमा।
अप्पिट्ठस्स य पंती, णाणागुणहाणिपडिबद्धा ।।९३५।। अर्थ - शेष ६ पंक्तियोंमें एक-एक पंक्तिमें पृथक्-पृथक् अपने इष्टका भाग देने पर नियमसे अपनी-अपनी इष्टराशि जो बीसकोड़ाकोड़ीसागरादि है उसकी नानागुण-हानिशलाकाकी पंक्तियाँ होती
सागर
विशेषार्थ - पूर्वोक्तगाथा (९३४) में जिसप्रकार १० कोड़ाकोड़ीसागरकी प्रथमपंक्ति सभी तीन स्थानोंकी जोड़रूपराशि पृथक्-पृथक् फलराशि मानी थी उसी प्रकार अवशिष्ट छहों पंक्तियोंमें भी फलराशि मानना तथा जैसे प्रथमपंक्तिमें १० कोड़ाकोड़ीसागरको इच्छाराशि माना था वैसे ही यहाँ छहों पंक्तियोंमें अपने-अपने इष्टरूप २० कोड़ाकोड़ीसागरादि राशियोंको अर्थात् इन छहमें से प्रथमपंक्तिमें २०, द्वितीयपंक्ति में ३०, तृतीयपंक्तिमें ४०, चतुर्थपंक्तिमें ५०, पंचमपंक्तिमें ६० और षष्ठपंक्तिमें ७० कोड़ाकोड़ीसागर इच्छाराशि मानना । फलराशिको इच्छाराशिसे गुणाकरके प्रमाणराशि से भाग देना सो प्रमाणराशि सर्वत्र (छहों पंक्तियोंमें) ७० कोड़ाकोड़ीसागर हो जानना। इसप्रकार त्रैराशिक विधिसे जोजो प्रमाण आवे वह-वह अपने इष्टरूप २०-३०-४० आदि कोड़ाकोड़ीसागरकी स्थितिसम्बन्धी, नानागुणहानिकी पंक्ति होती है।