Book Title: Gommatasara Karma kanda
Author(s): Nemichandra Siddhant Chakravarti, Jawaharlal Shastri
Publisher: Shivsagar Digambar Jain Granthamala Rajasthan

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Page 817
________________ प्रथमपंक्ति द्वितीयपंक्ति - तृतीयपंक्ति - गोम्मटसार कर्मकाण्ड - ७७८ पल्यका प्रमाण पण्णट्टी (६५५३६) की वर्गशलाका वर्गशलाका का वर्ग ६५५३६ का प्रथमवर्गमूल वर्गशलाकाके अर्धच्छेद १६ ( वर्गशलाकाके वर्ग) के अर्धच्छेद २५६ के अर्धच्छेद उपरितन वर्गशलाका ४ की वर्गशलाका उपरितन वर्गशलाका १६की वर्गशलाका उपरितन वर्गशलाका २५६ की वर्गशलाका ४ १६ २५६ २ ४ ८ १ २ ३ प्रथमपंक्ति में स्थित अंकोंका ( ४१६२५६) परस्पर गुणा करनेपर १६, ३८४ प्राप्त होते हैं सो यह अन्योन्याभ्यस्तराशि समझना । पल्यकी वर्गशलाकासे पल्यकी संख्या को भाग देनेपर भी अन्योन्याभ्यस्तराशिका प्रमाण निकलता है। यहाँ पल्यका प्रमाण ६५५३६ माना है। इसकी वर्गशलाका ४ है अतः ६५५३६÷४ = १६३८४ (अन्योन्याभ्यस्तराशि ) । द्वितीयपंक्तिके अंकोंका जोड़ करनेपर नानागुणहानिकी संख्या निकलती है (२+४+८) = १४ सो यह नानागुणहानिकी संख्या निकलेगी जैसे , पल्यके अर्धच्छेद १६ पल्की वर्गशलाका ४ के अर्धच्छेद २=९४ नाना गुणहानि इसप्रकार मिथ्यात्वकर्मकी उत्कृष्टस्थिति एकपल्य मानली एवं पल्यकी संख्या ६५५३६ मानली है तो नानागुणहानि १४ और अन्योन्याभ्यस्तराशि १६३८४ होगी। तृतीयपंक्तिके अंकोंका यहाँ प्रयोजन नहीं है। बग्गसलायेण वहिदपल्लं अण्णोण्णगुणिदरासी हु । णाणागुणहाणिसला वग्गसलच्छेदणूणपल्लछिदी ।। १२६ ।। अर्थ - पल्यकी वर्गशलाकाका भाग पल्यमें देनेसे अन्योन्याभ्यस्तराशिका प्रमाण होता है तथा पत्यकी वर्गशलाकाके अर्धच्छेदोंको पल्यके अर्धच्छेदोंमें से घटानेपर जो प्रमाण हो उतनी नानागुणहानिराशि जाननी चाहिए। अब नानागुणहानिआयाम का प्रमाण कहते हैं

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