Book Title: Gommatasara Karma kanda
Author(s): Nemichandra Siddhant Chakravarti, Jawaharlal Shastri
Publisher: Shivsagar Digambar Jain Granthamala Rajasthan
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गोम्मटसार कर्मकाण्ड-७७७
विशेषार्थ - सातकर्मोंमें द्रव्य, स्थिति, गुणहानिआयाम और दो गुणहानिकी सहनानी तो समान है। यहाँ द्रव्यस्थिति महापि होनाधिक है तथापि पारामापसे दव्य समयपबद्धप्रमाण, स्थिति संख्यातपल्य कहनेसे समानता जानना तथा नानागुणहानि और अन्योन्याभ्यस्तराशि समान नहीं है अत: इनको विशेषरूपसे कहा जाता है। ७० कोड़ा-कोड़ीसागरकी स्थितिवाले मिथ्यात्वकर्मका सर्वप्रथम कथन करते हैं
पल्यकी वर्गशलाकासे पल्यके प्रथममूलपर्यन्त द्विरूपवर्गधारा के स्थानोंको, उन्हीं के अर्धच्छेदोंको तथा उन्हींकी वर्गशलाकाको स्थापनकर तीनपंक्ति करना। प्रथमपंक्ति में तो पत्यकी वर्गशलाका का प्रमाण नीचे लिखना एवं इसका वर्ग उसके ऊपर लिखना, इस प्रकार क्रम से प्रथममूल पर्यन्त वर्गस्थान लिखना 1 दूसरी पंक्तिमें पल्यकी वर्गशलाकाके अर्धच्छेदोंसे लेकर दूने-दूने पल्यके प्रथमवर्गमूलके अर्धच्छेदपर्यन्त लिखना। तृतीयपंक्तिमें पल्यकी वर्गशलाकाकी (वर्ग) शलाकासे लेकर एक-एक अधिकप्रमाण लिये पल्यके प्रथममूलकी वर्गशलाकापर्यन्त लिखना । यहाँ प्रथमपंक्तिकी राशिको परस्पर गुणाकरनेपर पल्यकी वर्ग-शलाका का भाग पल्यमें देना जो प्रमाण आवे उतना है वही अन्योन्याभ्यस्तराशिका प्रमाण है। द्वितीयपंक्ति का जोड़ देने पर पल्य की वर्गशलाका के अर्धच्छेदोंके प्रमाणको पल्यके अर्धच्छेदोंमें से घटानेपर जो प्रमाण होता है उसको बताते हैं
द्विरूप वर्गधारा में प्रत्येकस्थानके अर्धच्छेद दूने कहे थे सो उनको "अंतधणं गुणगुणियं आदिविहीणं रूऊणुत्तरपदभजिय' इस सूत्र के अनुसार पल्यके अर्धच्छेदोंसे आधे पल्यके प्रथममूलके अर्धच्छेदरूप अन्तधनको गुणकार दोसे गुणा करनेपर पल्यके अर्धच्छेदका प्रमाण हुआ, उसमें से पल्यकी वर्गशलाकाके अर्धच्छेदोंका प्रमाण घटानेपर जो प्रमाण आया वह पल्यकी वर्गशलाका के अर्द्धच्छेदों से हीन पल्य की अर्द्धच्छेद राशि का जो प्रमाण है उतना है, उसको एककम गुणकार दो से (गुणकार दोमें एक घटानेपर एक रहा) भाग देनेपर उतने ही रहे सो यह चतुर्थराशि नानागुणहानिका प्रमाण जानना । अब इस कथनको अकसन्दृष्टि से कहते हैं -
७० कोडाकोड़ीसागरको एकपल्य व पल्यको पण्णट्टी (६५५३६) मानलें तब पहले के समान ही गणित करनेपर नानागुणहानि व अन्योन्याभ्यस्तराशिका प्रमाण निकल आवेगा ।
वर्गशलाका - किसी विशिष्ट संख्याका वर्गमूल जितनीबार निकाला जा सके उतनी संख्याको वर्गशलाका कहते हैं सो यहाँ ६५५३६ की वर्गशलाका ४ है।
___अर्धच्छेद - रके अङ्कको २ से गुणा करने पर विशिष्टसंख्या (४) प्राप्त हुई। उस संख्याके जितने रके अङ्क लिखे जाते हैं वे अर्धच्छेद कहलाते हैं जैसे- ४के अर्धच्छेद २ हैं एवं १६ के अर्धच्छेद ४