Book Title: Gommatasara Karma kanda
Author(s): Nemichandra Siddhant Chakravarti, Jawaharlal Shastri
Publisher: Shivsagar Digambar Jain Granthamala Rajasthan

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Page 815
________________ गोम्मटसार कर्मकाण्ड-७७६ १२० १०० पंचम चतुर्थ ४१६ २०८ १०४ तृतीय ४४८ २२४ द्वितीय ४८० २४० प्रथम १२८ गुणहानि | ३२०० ४०० २०० द्रव्य कुलद्रव्य ६३००, एकगुणहानिआयाम ८, नानागुणहानि ६, प्रथमगुणहानिमें चय ३२, दोगुणहानि ८४२=१६, अन्योन्याभ्यस्तपिश २२४१.३४.२४२८६४! अब उपर्युक्त कथन का अङ्कसन्दृष्टि द्वारा आचार्य स्वयं कथन करते हैं - . तेवष्टुिं च सयाई, अडदाला अट्ट छक्क सोलसयं । चउसटुिं च विजाणे, दव्वादीणं च संदिट्ठा ॥९२३॥ अर्थ - अंकसन्दृष्टिमें द्रव्य ६३००, स्थिति ४८, गुणहानिआयाम ८, नाना-गुणहानि ६, दोगुणहानि १६ और अन्योन्याभ्यस्तराशि ६४ जानना । दव्वं समयपबद्धं, उत्तपमाणं तु होदि तस्सेव । जीवसहत्थणकालो, ठिदिअद्धा संखपल्लमिदा ।।९२४ ।। अर्थ - अर्थसन्दृष्टि में दृष्टोतरूप यथार्थ कथनकरके द्रव्य तो पूर्वोक्त प्रमाण समयप्रबद्ध जानना । एकसमयमें जितने परमाणु बँधते हैं उनका कधन पहले प्रदेशबन्ध अधिकारमें कह आए हैं सो उनका प्रमाणरूप तो द्रव्यराशि है तथा जो बंधा हुआ समय-प्रबद्ध वह जबतक जीवके साथ अवस्थानरूप रहे सो स्थितिका अद्धा (काल) आयाम है, स्थिति संख्यातपल्यप्रमाण है सो उसके समयोंका प्रमाण स्थितिराशि है। मिच्छे वग्गसलायप्पहदि पल्लस्स पढमम्लोत्ति । वग्गहदी चरिमो तच्छिदिसंकलिदं चउत्थो य ।।९२५ ।। अर्थ - मिथ्यात्वकर्ममें पल्यकी वर्गशलाकाको आदि लेकर पल्यके प्रथममूल-पर्यन्त उन वर्गोका परस्पर गुणा करनेसे चरमराशि अर्थात् अन्योन्याभ्यस्तराशिका प्रमाण होता है और उनकी अर्धच्छेदराशियोंको संकलित करनेसे चतुर्थराशि अर्थात् नानागुणहानिका प्रमाण होता है।

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