Book Title: Gommatasara Karma kanda
Author(s): Nemichandra Siddhant Chakravarti, Jawaharlal Shastri
Publisher: Shivsagar Digambar Jain Granthamala Rajasthan
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मोम्मटसार कर्मकाण्ड-७७९
सव्वसलायाणं जदि,पयदणिसेये लहेज एक्कस्स ।
किं होदित्ति णिसेये, सलाहिदे, होदि गुणहाणी ।।९२७ ।। अर्थ - सर्व नानागुणहानिशलाकाकि यदि पूर्वीक्त स्थितिके सर्वनिषेक होते हैं तो एकगुणहानिशलाकाके कितने निषेक होंगे? इस प्रकार त्रैराशिक विधिके अनुसार निषेकोंमें शलाकाओंका भाग देनेसे जो प्रमाण हो वह एकगुणहानिआयामका प्रमाण होता है।
विशेषार्थ - यहाँ प्रमाणराशि नानागुणहानिका प्रमाण अर्थात् पल्यकी वर्गशलाकाके अर्धच्छेदोंसे हीन पल्यके अर्धच्छेद (पल्य के अर्धच्छेद-पल्यकी वर्गशलाकाके अर्धच्छेद) और फलराशि सर्वस्थितिके निषेक सो वे संख्यातपल्यप्रमाण हैं, इच्छाराशि १ शलाकाप्रमाण है। फलराशिको इच्छाराशिसे गुणाकरके प्रमाणराशिका भाग देनेसे जो प्रमाण आवे वह गुणहानि आयामका प्रमाण जानना । जैसे-अङ्कसन्दृष्टिसे प्रमाण-राशि (नानागुणहानि) ६, फलराशि (स्थिति) ४८, इच्छाराशि ५ गुणहानि है, अत: ४८४१२६८ लब्ध आया सो इतने निषेक एकगुणहानि सम्बन्धी जानना अर्थात् गुणहानि आयाम का प्रमाण ८ है। आगे दोगुणहानिका प्रमाण और उसके माननेका प्रयोजन बताते हैं
दोगुणहाणिपमाणं, णिसेगहारो दु होदि तेण हिदे।
इटे पढमणिसेगे, विसेसमागच्छदे तत्थ ॥९२८ ।। अर्थ - गुणहानिआयामके प्रमाणको दूना करनेपर दो गुणहानि होती है इसी का नाम निषेकहार है। इसका प्रयोजन यह है कि निषेकहारका भाग विवक्षित गुणहानिके प्रथमनिषेकमें देनेसे जो प्रमाण आवे वह उस गुणहानिमें विशेष (चय) का प्रमाण है प्रत्येकनिषेकमें अर्थात् आदिनिषेकसे अन्तनिषेकपर्यन्त जितने-जितने निषेक घटते जावें उतने प्रमाणको विशेष (चय) कहते हैं।
इसप्रकार द्रव्यादिका प्रमाण कहकर अब अन्य कार्य बताते हैं
रूऊणण्णोण्णब्भत्थवहिददव्वं च चरिमगुणदव्वं ।
होदि तदो दुगुणकमो, आदिमगुणहाणिदव्वोत्ति ॥९२९ ।। अर्थ - एक कम अन्योन्याभ्यस्तराशिका भाग सर्वद्रव्योंमें देनेसे जो प्रमाण आवे वह अन्तगुणहानिका द्रव्य जानना और इससे दूना- दूना द्रव्य प्रथमगुणहानिके द्रव्यपर्यन्त जानना ।
विशेषार्थ - अङ्कसन्दृष्टिमें मिथ्यात्वके सर्वद्रव्य ६३०० में एककम अन्योन्याध्यस्तराशि (६४१) ६३ का भाग देनेपर (६३००५६३) १०० आये, सो यह अन्तिम गुणहानिका द्रव्य जानना। इसमें