Book Title: Gommatasara Karma kanda
Author(s): Nemichandra Siddhant Chakravarti, Jawaharlal Shastri
Publisher: Shivsagar Digambar Jain Granthamala Rajasthan
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गोम्मटसार कर्मकाण्ड-७३९
अडसट्ठी एकसयं, कसायभागम्मि सुहुमगे संते | अडदालं चउवीसं, खवगेसु जहाकम वोच्छं ।।८७१ ॥ अडदालं चारिसयापुव्वे अणियट्टिवेदभागे य। .. सीदी कसायभागे, तत्तो बत्तीस सोलं तु ।।८७२ ।। जोगिम्मि अजोगिम्मि य, बेसदछप्पण्णयाण गुणगारान चउसट्ठी बत्तीसा, गुणगुणिदेक्कूणया सव्वे ।।८७३॥ सिद्धेसु सुद्धभंगा, एक्कत्तीसा हवंति णियमेण।
सव्वपदं पडि भंगा, असहायपरक्कमुद्दिट्टा ।।८७४ ।। अर्थ – पिंडपदरूप भावोंकी तिर्यक् (बराबर) रचनाकर असंयत तथा देशसंयत गुणस्थानमें क्षायिकसम्बर को छोड़कर अन्वधानों मुगापानोसा २५ करके यथासम्भव भंग जानना चाहिए। यहाँ क्षायिकसम्यक्त्व इसलिए छोड़ दिया गया है कि उसका कथन पृथक् करेंगे तथा सर्वपदोंके भंग जाननेके लिए मिथ्यात्वादि गुणस्थानोंमें ऊर्ध्वरचनावाले प्रत्येकपद और तिर्यक् रचनावाले पिंडपदके भंगरूप धनको मिलानेसे उस-उस गुणस्थानके सर्वपदोंका भंगरूप सर्वधन नियमसे होता है।८६२
प्रत्येकपद क्रमसे मिथ्यात्वादि दो गुणस्थानोंमें १५, मिश्रादि तीनगुणस्थानोंमें १६, प्रमत्तादि दो गुणस्थानों में १८, दोनों (उपशमक-क्षपक) श्रेणियोंके अपूर्वकरण व अनिवृत्तिकरणगुणस्थानमें २० - १९, उपशमकसूक्ष्मसाम्परायमें २०, उपशान्तकषायगुणस्थानमें १९, क्षपकसूक्ष्मसाम्परायमें २१, क्षीणकषायमें २०, सयोगकेवलीमें १४, अयोगकेवलीमें १३ और सिद्धोंमें ५ जानना चाहिए ।।८६४
६५॥
मिथ्यात्वसे क्षीणकषायगुणस्थानपर्यन्त सर्वपदभंगोंका प्रमाण प्राप्त करनेके लिए यहाँ पण्णट्ठी (६५५३६) को गुण्य समझना चाहिए और इस गुण्यका आगे बताये गए गुणकारोंसे गुणा करना चाहिए तथा उसमेंसे एक कम करनेसे तद्-तद् स्थानोंके सर्वपदभंगोंका प्रमाण होता है।।८६६ ।।
उपर्युक्त गुण्यके गुणकार क्रमसे मिथ्यात्वगुणस्थानमें ७१९५ का आधा प्रमाण, साप्तादनगुणस्थानमें एककम १८०० का आधा प्रमाण, मिश्रगुणस्थानमें १६०७ है। असंयतगुणस्थानमें ७३६७ एवं इसी गुणस्थानमें क्षायिकसम्यक्त्वके गुणकार १६६४, देशसंयतगुणस्थानमें २९९१ और इसी गुणस्थानमें क्षायिकसम्यक्त्वमें मनुष्यके ही ५७६ गुणकार हैं, ये तिर्यञ्चके नहीं है, क्योंकि