Book Title: Gommatasara Karma kanda
Author(s): Nemichandra Siddhant Chakravarti, Jawaharlal Shastri
Publisher: Shivsagar Digambar Jain Granthamala Rajasthan
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सूक्ष्मसाम्पराय
(उपशमक)
क्षपक
उपशान्तकषाय
क्षीणकषाय
सयोगकेवली
अयोगकेवली
सिद्ध
२०
२१
१९
२०
१४
१३
१
०
१
C
a
०
ॐ
गोम्मटसार कर्मकाण्ड- ७५०
६५५३६
६५५३६
६५५३६
६५५३६
२५६
२५६
०
४८
३२
२४
१६
६४
३२
०
१
१
१
१
१
०
(६५५३६x४८ ) - १=३१४५७२७
( ६५५३६३२) - १=२०१७१५१ (६५५३६x२४ ) - १-१५७२८६३ (६५५३६×१६ ) - १०१०४८५७६
सर्वप्रथम क्रियावादियोंके मूल भङ्ग कहते हैं
( २५६४६४ ) - १ = १६३८३ (२५६४३२ ) - १ = ८१९१
शुद्धभंग ३१
अब गुणस्थानवत् मार्गणाओंमें भी भावोंके स्थान व पदरूप भंगोंको कहते हैं
आदेसेवि य एवं संभवभावेहिं ठाणभंगाणि ।
पदभंगाणि य कमसो, अव्वामोहेण आणेज्जो ॥। ८७५ ।।
अर्थ आदेश में (मार्गणाओंमें) भी गुणस्थानवत् यथासम्भव भावोंसे होनेवाले स्थान व पदभंगोंको क्रमसे मोहरहित होकर जानना चाहिए।
आगे, जिनमें सर्वथा एक ही नयका ग्रहण किया जाता है, ऐसे एकान्तमतों के भेद कहते हैं
असिदिसदं किरियाणं, अक्किरियाणं च आहु चुलसीदी। सत्तट्टण्णाणीणं, वेणयियाणं तु बत्तीसं ॥ ८७६ ।।
१
अर्थ - क्रियावादियोंके १८०, अक्रियावादियोंके ८४, अज्ञानवादियों के ६७ और वैनयिकवादियों के ३२ भेद हैं, इसप्रकार एकान्तवादियोंके भेद जानना ।
अत्थि सदो परदोवि य, णिच्चाणिच्चत्तणेण य णवत्था । कालीसरप्पणियदिसहावेहि य ते हि भंगा हु ||८७७ ॥
अर्थ- सर्वप्रथम 'अस्ति' ऐसा पद लिखना उसके ऊपर 'स्वसे, परसे, नित्यपनेसे, अनित्यपनेसे' ये चारपद लिखना उनके ऊपर जीव, अजीव, पुण्य, पाप, आस्रव, बन्ध, संवर, निर्जरा व मोक्ष ये
१. प्रा. पं. सं. पू. ५४५ गाथा २२ ।