Book Title: Gommatasara Karma kanda
Author(s): Nemichandra Siddhant Chakravarti, Jawaharlal Shastri
Publisher: Shivsagar Digambar Jain Granthamala Rajasthan

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Page 806
________________ गोम्मटसार कर्मकाण्ड-७६७ अंतोमुत्तकालं, गमिऊण अधापवत्तकरणं तु। पडिसमयं सुज्झता, अपुव्वकरणं समल्लियइ ।।९०८ ।। अर्थ - सातिशयअनमत्तसंयमी समय-समयप्रति अनन्तगणीविशुद्धतासे बढ़ता हुआ अन्तर्मुहूर्तकालपर्यन्त अध:करण करता है। पुनः उसको समाप्त करके अपूर्वकरण को प्राप्त होता है। आगे अङ्कसन्दृष्टि द्वारा अपूर्वकरणपरिणामोंका कथन करते हैं छण्णउदिचउसहस्सा, अट्ठ य सोलस धणं तदद्धाणं । परिणामविसेसोवि य, चउ संखापुवकरणसंदिट्ठी ।।९०९ ॥ अर्थ - अपूर्वकरणमें सर्वधन ४०९६ और गच्छ ८, परिणामविशेष १६ एवं संख्यातका प्रमाण ४ है सो यह अङ्कसन्दृष्टिमें कथन किया है। विशेषार्थ - यहाँ अपूर्वकरणके सर्वस्थानोंका प्रमाण सर्वधन, अपूर्वकरणकालसम्बन्धी समयोंका प्रमाण गच्छ, प्रतिसमय बढ़ते हुए परिणाम विशेष अर्थात् चयं तथा चयको प्राप्त करने के लिये सख्यातका प्रमाण ४ है। अंतोमुहत्तमेत्ते, पडिसमयमसंखलोगपरिणामा। कमउड्डापुव्वगुणे, अणुकट्टी णत्थि णियमेण ॥९१० ॥ अर्थ – अपूर्वकरणका काल अन्तर्मुहुर्तमात्र है। इसमें समय-समयप्रति असंख्यातलोकप्रमाण परिणाम पाए जाते हैं और वे प्रथमसमयसे अन्तिमसमयपर्यन्त समान चयरूप बढ़ते हैं। इसमें अनुकृष्टिरधना नहीं होती है। विशेषार्थ – अपूर्वकरणमें उपरितन समयवर्ती परिणाम अधस्तन समयवर्ती परिणामोंके सदृश नहीं होते। किसी जीवका प्रथमसमयमें उत्कृष्ट परिणाम होता है किसी जीवका द्वितीयसमयमें जघन्य परिणाम होता है तथापि प्रथमसमयवर्ती जीवके परिणामोंसे द्वितीयसमयवर्ती जीवके परिणामों में अधिकता पाई जाती है। अत: जिनके अपूर्वकरणका प्रथमसमय है उन अनेक जीवोंके परिणामोंकी समानता भी होती है और असमानता भी होती है, किन्तु द्वितीयादिसमयवर्ती जीवोंके परिणामोंसे कदाचित् भी समानता नहीं होती इसप्रकार जिनके अपूर्वकरणको प्राप्त किये हुए द्वितीयादि समय हो गये हैं उनके परिणामोंकी परस्परमें समानता व असमानता और उपरितन व अधस्तन समयवर्ती परिणामोंसे असमानता ही है इसीलिए इसका नाम अपूर्वकरण है। यहाँ सर्वधन ४०९६, गच्छ ८, इसकावर्ग ६४, संरख्यातकी सहनानी ४ 'पदकदिसंखेण भाजिदे पचयं' गाथा ९०२ के इस सूत्रानुसार पद (गच्छ) के वर्ग ६४

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