Book Title: Gommatasara Karma kanda
Author(s): Nemichandra Siddhant Chakravarti, Jawaharlal Shastri
Publisher: Shivsagar Digambar Jain Granthamala Rajasthan

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Page 812
________________ गोम्मटसार कर्मकाण्ड-७७३ प्रमाण है। कर्मभूमिमें आयु का त्रिभाग अवशेष रहनेपर, भोगभूमि व देव-नारकियोंमें छहमास अवशेष रहनेपर आयुबन्धकी योग्यता होती है। अत: उत्कृष्ट आबाधा पूर्वकोटिवर्षका तृतीयभाग जानना और जघन्य आबाधा असंक्षेपाद्धा (क्षुद्रभवका संख्यातवाँभाग) अर्थात् जिससे थोड़ा-काल कोई न हो उतने प्रमाण है। (क्षुद्रभव आयुवाला अपनी आयुके अन्तिम अपकर्षमें आयुका बन्ध करता है उसकी आबाधा क्षुद्रभव के संख्यातवेंभागप्रमाण होती है।) इसप्रकार उदयकी अपेक्षा आबाधा कही। आगे उदीरणा की अपेक्षा आबाधा का कथन करते हैंआवलियं आबाहा, उदिरणमासिज सत्तकम्माणं। परभाविय.आत्त य, उदीहणा पनि णियमेण ।।९१८॥ १. यद्यपि कर्मकाण्डमें, भौगभूमिमें नवरास आयु शेष रहने पर आयुबन्धकी योग्यता आती है, ऐसा लिखा है, किन्तु 'असंखेज्जवस्साऊ तिरिक्ख-मणुसा अधित्ति चेण, तसिं देवणेरइयाणं व जमाणाउए छम्मासो अहिए संते परभवि आउस्स बंधाभावा" धपु. ६ पृ. १७० के इन वचन के अनुसार यहाँ भोगभूमि की भी ६ माह आबु शेष रहने पर ही आयुबन्ध की योग्यता आती है ऐसा कहा है। इसीलिए कर्मकाण्डके इस प्रकरणमें ऊपर भी ६ मास ही दिया गया है। २. भोगभूमियों के आयुबन्ध की योग्यता कब होती है? (दो मत) शंका-भोगभूमियामनुष्य और तिर्यंचों के भुज्यमानआयु के ९ माह अवशेष रहने पर आगामीभव के आयुबंध की योग्यता बतलाई है। माथा १५८, माथा ९१७ में बड़ी टीका में ६ माह अवशेष रहने पर आयुबंध की योग्यता बतलाई है सो कैसे? समाधान - भोगभूमियामनुष्य व तिर्यंच के भुज्यमानआयु के ९ मास व छह मास शेष रह जानेपर परभबिक आयुबंध की योग्यता होती है, ये दोनों कथन गोम्मटसार-कर्मकाण्ड की बड़ी टीका में पाये जाते हैं। इन दोनों कथनों में संभवत: भरतऐरावत में सुखमादि तीनकाल की तथा हैमवत आदि क्षेत्रों की शाश्वतभोगभूमिया की विवक्षा रही है। भरत और ऐरावत क्षेत्रों में शाश्वतभोगभूमि नहीं है अत: यहाँ पर भुज्यमानआयु के ९ माह शेष रहने पर परभवआयु बंध की योग्यता हो जाती है और शाश्वतभोगभूमियों में ६ माह आयुशेष रहने पर परभव-आयुबंध की योग्यता होती है, किन्तु श्रीधवल ग्रंथ में ६ माह शेष रहने पर परभवआयुबंध की योग्यता बतलाई है। "णिरुवक्कमाउआपुण छम्मासावसे से आउअबंध-पाओग्गा होति ।" (धवल पु. १० पृ. २३४) अर्थ - जो निरुपक्रमायुप्क जीव हैं अपनी भुज्यमानआयु छहमाह शेष रहने पर आयुबंध के योग्य होते हैं। "औपपादिक चरमोत्तमदेहाऽसंख्येयवर्षायुषोऽनपवायुषः।" ५३ ।। (मो. शास्त्र अ. २) अर्थात् - औपपादिक (देव व नारकी), चरमोत्तमदेहा (तद्भवमोक्षगामी) और असंख्यातवर्ष की आयुवाले (भोगभूमिया) ये जीवों की अनपवर्त आयुवाले (निरुपक्रमायुष्क) होते हैं। श्रीधवल-ग्रंथराज के अनुसार सभी भोगभूमियाजीव भुज्यमानआयु के ६ मास शेष रह जाने पर परभधिकआयुबंध के योग्य होते हैं। ३. इस प्रसंग में ध.पु. ११ पृ. २७५ भी देखना चाहिए । ४. ध.पु. १० पृ. २३७ पर भी यह प्रकरण दिया गया है।

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