Book Title: Gommatasara Karma kanda
Author(s): Nemichandra Siddhant Chakravarti, Jawaharlal Shastri
Publisher: Shivsagar Digambar Jain Granthamala Rajasthan
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गोम्मटसार कर्मकाण्ड-७६२ अधःप्रवृत्तकरणकालके संख्यातवेंभागप्रमाण है। अङ्कसन्दृष्टिसे-ऊर्ध्वगच्छ १६ में संख्यातरूप ४का भाग देनेसे अनुकृष्टिके गच्छका प्रमाण (१६:४)-४ प्राप्त हुआ।
अणुकट्टिपदेण हदे, पचये पचयो दु होदि तेरिच्छे।
पचयधणूणं दव्वं, सगपदभाजिदं हवे आदी॥९०६ ।। अर्थ – अनुकृष्टिके गच्छका भाग ऊर्ध्वचयमें देनेसे जो प्रमाण हो वह अनुकृष्टिका चय होता है और प्रत्येक समयसम्बन्धी अनुकृष्टिके सर्वधनमें से प्रचयधन कम करनेपर जो प्रमाण आवे उसमें अपने-अपने गच्छका भाग देनेसे अनुकृष्टिके प्रथमखण्ड का प्रमाण होता है।
विशेषार्थ - यहाँ अनुकृष्टि गच्छ ४का ऊर्ध्वचय ४में भाग देनेपर (४/४) एक प्राप्त हुआ सो अनुकृष्टिका चय जानना तथा 'व्येकपदार्धघ्नचयगुणो गच्छ उत्तरधनं' इस करणसूत्रसे एककम गच्छ (४-१) ३ इसका आधा डेढ़ इसको चय १से गुणाकरे तो (१ १/२४१=१ १/२) और गच्छसे गुणा करे तो (१ १/२४४) ६ हुए सो अनुकृष्टिमें प्रचयधन जानना। प्रथमसमय सम्बन्धी जो १६२ परिणाम वे ही प्रथमसमयसम्बन्धी अनुकृष्टि का सर्वधन है। उसमें प्रचयधन ६ घटाकर (१६२-६) १५६ रहे उसको अनुकृष्टिगच्छ (४) का भाग देनेपर १५६४-३९ आये सो यह प्रथमसमय की अनुकृष्टिके प्रथमखण्डके परिणामोंकी संख्याका प्रमाण जानना ।
आदिम्हि कमे वडदि, अणुकट्टिस्स य चयं तु तेरिच्छे।
इदि उहतिरियरयणा, अधापवत्तम्हि करणमम्हि ।।९०७ ।। अर्थ - प्रथमखण्डसे आगे द्वितीयादि खण्डोंमें तिर्यग्रूप अनुकृष्टिका एक-एक चय क्रमसे बढ़ता है तब द्वितीयादि खण्डोंका प्रमाण होता है। इसप्रकार ऊर्ध्वरूप और तिर्यग्रूप दोनों ही रचना अधः प्रवृत्तकरणमें जाननी चाहिये।
विशेषार्थ – उस आदिखण्डसे द्वितीयादि खण्डमें क्रमसे तिर्यग्रूप एक-एक अनुकृष्टिका चय बढ़ना सो अनुकृष्टिका चय एक-एक बढ़नेसे ३९।४०।४१।४२, द्वितीयसमयमें ४०।४१४२।४३ । प्रमाण जानना सो द्वितीयसमयके और प्रथमसमयसम्बन्धी ४०।४१।४२। परिणाम समान हैं। इसीप्रकार तृतीयादि समयमें अनुकृष्टिरचना करके खण्डमें परिणामोंका प्रमाण व अधःस्तन समयसम्बन्धी परिणामोंसे समानता जानना चाहिए। ऐसे ऊर्ध्व व तिर्यप्रचयरूप दोनों रचना अधःप्रवृत्तकरणमें है। जैसे-अंकोंकी सहनानीसे दृष्टांतरूप कथन किया उसीप्रकार अर्थसन्दृष्टिके द्वारा यथार्थ कथन जानना। प्रथमसमयका प्रथमखण्ड और अन्तिमसमयके अन्तिमखण्डबिना उपरितन सर्वखण्डसम्बन्धी परिणामों के अधस्तनखण्डसम्बन्धी परिणामोंसे यथासम्भव समानता है सो इस करण का नाम अध:प्रवृत्त है। १. ज.ध.पु. १२ पृ. २३६।