Book Title: Gommatasara Karma kanda
Author(s): Nemichandra Siddhant Chakravarti, Jawaharlal Shastri
Publisher: Shivsagar Digambar Jain Granthamala Rajasthan
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गोम्मटसार कर्मकाण्ड-७५८ अधःप्रवृत्त, अपूर्वकरण व अनिवृत्तिकरण ये विशुद्धिरूप तीनकरण होते हैं। उनमें से प्रथम अध:प्रवृत्तकरणको सातिशय अप्रमत्तगुणस्थानवी जीव करता है। यहाँ करणनाम परिणामका है।' आगे अध:प्रवृत्तकरण का शब्दार्थ से सिद्ध हुआ लक्षण कहते हैं
जम्हा उवरिमभावा, हेट्ठिमभावेहिं सरिसगा होति ।
तम्हा पढमं करणं, अधापवत्तोति णिद्दिटुं ।।८९८ ॥ अर्थ- जिसकारण इस प्रथमकरणमें उपरितन समयवर्तीभाव (परिणाम) अधस्तनसमय सम्बन्धी भावोंके समान होते हैं इसलिए प्रथमकरणका अधःप्रवृत्तकरण ऐसा अन्धर्थ (अर्थक अनुसार नाम कहा गया है।
अंतोमुत्तमेत्तो, तक्कालो होदि तत्थ परिणामा। लोगाणमसंखपमा, उवरुवरि सरिसवहिगया ॥८९९ ।।
अर्थ – उस अधःप्रवृत्तकरणका काल अन्तर्मुहूर्त है। उस कालमें जीवके असंख्यातलोकप्रमाण परिणाम होते हैं और वे परिणाम प्रथमसमयसे लेकर आगे-आगेके समयोंमें समानवृद्धि (चय) रूपसे अन्तसमयपर्यन्त बढ़ते हैं।
विशेषार्थ - अन्तर्मुहूर्तप्रमाण समयोंकी पंक्तिको ऊर्ध्व आकारसे स्थापित करके उन समयोंके प्रायोग्यपरिणामोंका प्ररूपण करते हैं- अधःप्रवृत्तकरणमें प्रथमसमयवर्ती जीवोंके योग्यपरिणाम असंख्यातलोकप्रमाण हैं। द्वितीय समयवर्ती जीवोंके योग्यपरिणाम भी असंख्यातलोकप्रमाण हैं। इसप्रकार समय-समयके प्रति अधःप्रवृत्तकरणसम्बन्धी परिणामोंके प्रमाणका निरूपण अध:प्रवृत्तकरणकालके अन्तिमसमयतक करना चाहिए। अधःप्रवृत्तकरणके प्रथमसमयसम्बन्धी परिणामोंसे द्वितीयसमयके योग्यपरिणाम विशेषअधिक होते हैं। वह विशेष अन्तर्मुहूर्त-प्रतिभागी है, अर्थात् प्रथमसमयसम्बन्धी परिणामों के प्रमाणमें अंतर्मुहूर्तका भाग देनेपर जितना प्रमाण आता है, उतने प्रमाण से अधिक है। अधःप्रवृत्तकरणके द्वितीयसमयसम्बन्धी परिणामोंसे तृतीयसमयके परिणाम विशेषअधिक होते हैं। इसप्रकार यह क्रम अधःप्रवृत्तकरणकाल के अन्तिमसमयतक ले जाना चाहिये।
१. "असि-वासीण व साहयतमभावविवखाए परिणामाण करणत्तु वलभादो।" (धवल पु. ६ पृ. २१७) तलवार और वसूलाके समान साधकतमभावकी विवक्षा परिणामोंके कारणपना पाया जाता है।
२. लब्धिसार गाथा २५, धवल पु.६१.२१७; जयधवल पु. १२ पृ. २३३ । ३. धवल पु. ६ पृ. २१४-२१५; जयधवल पु. १२ पृ. २३५1