Book Title: Gommatasara Karma kanda
Author(s): Nemichandra Siddhant Chakravarti, Jawaharlal Shastri
Publisher: Shivsagar Digambar Jain Granthamala Rajasthan
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गोम्मटसार कर्मकाण्ड-७५७
जितने वचनके मार्ग हैं उतने नय हैं। इनको प्रतिपक्षीकी अपेक्षासे रहित एकान्तरूपसे ग्रहण करनेसे मिथ्यात्वरूप हैं तथा प्रतिपक्षीकी अपेक्षा लेनेपर स्याद्वादरूपसे ग्रहण करनेपर सम्यकप हैं।' इसप्रकार अन्यमतोंका विवाद एक स्याद्वादसे ही मिट सकता है, ऐसा समझना चाहिए।
इति श्रीनेमिचन्द्राचार्य विरचित गोम्मटसारकर्मकाण्डकी 'सिद्धान्तज्ञानदीपिका' नामा हिन्दीटीका हाबलिका सः अधिकार पूर्ण हुमः।
अथ त्रिकरणचलिकाधिकार
अथानन्तर त्रिकरणचूलिकाको कहनेकी इच्छावाले आचार्य गुरुको नमस्कार करते हुए श्रोताओंको भी सावधान करनेकी इच्छासे उसप्रकार करनेका उपदेश करते हैं
णमह गुणरयणभूसण, सिद्धंतामियमहद्धिभवभावं ।
वरवीरणंदिचंदं, णिम्मलगुणमिंदणंदिगुरुं॥८९६॥ अर्थ – हे गुणरूपी रत्नके आभूषण चामुण्डराय ! तुम सिद्धान्तशास्त्ररूपी अमृतमय महासमुद्रमें उत्पन्न हुए ऐसे उत्कृष्ट बीरनन्दी नामा आचार्यरूपी चन्द्रमाको नमस्कार करो तथा निर्मल गुणोंवाले इन्द्रनन्दी नामक गुरुको नमस्कार करो।
यद्यपि अध:करण, अपूर्वकरण, अनिवृत्तिकरण इन तीनोंका विस्तारपूर्वक कथन तो इसी ग्रन्थमालासे प्रकाशित लब्धिसारग्रन्थके उपशमसम्यक्त्वप्रकरणमें किया गया है अत; वहींसे देखना चाहिए; तथापि आचार्य यहाँपर तीनकरणोंका स्वरूप कहते हैं
इगिवीसमोहखवणुवसमणणिमित्ताणि तिकरणाणि तहिं।
पढमं अधापवत्तं, करणं तु करेदि अप्पमत्तो।।८९७ ॥ अर्थ – चारित्रमोहनीयकी २१ प्रकृतियों का क्षय करनेके लिए अथवा उपशम करनेके लिए
१.मिच्छादिट्टी सब्चे विणया सपक्खपडिनद्धा। अण्णोण्ण णिस्सिया उण लहंति सम्मत्त सम्भाव।।१०२॥ (ज.ध.पु. १ पृ. २४९)