Book Title: Gommatasara Karma kanda
Author(s): Nemichandra Siddhant Chakravarti, Jawaharlal Shastri
Publisher: Shivsagar Digambar Jain Granthamala Rajasthan

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Page 781
________________ गोम्मटसार कर्मकाण्ड-७४२ पण्णट्ठीप्रमाण होते हैं। इसप्रकार प्रत्येकपद व पिण्डपदोंके मिलकर (८५६+७२+१+२+ १ १७१९) १७९९ के आधेप्रमाणसे गुणित पण्णट्ठीप्रमाण में से एक कम करनेसे सर्व पदके भंग सासादनगुणस्थानमें जानना। मिश्रगुणस्थानमें प्रत्येकपद मिश्ररूप मतिज्ञानके १, श्रुतज्ञानके २, अवधिज्ञान के ४ तथा चक्षुदर्शनके ८, अचक्षुदर्शनके १६, अवधिदर्शनके ३२, दानके ६४, लाभके १२८, भोगके २५६, उपभोगके ५१२ एवं वीर्यलब्धिके १०२४, अज्ञानके २०४८, असंयमके ४०९६, असिद्धत्वके ८१९२, जीवत्वके १६३८४ व भव्यत्वक ३२७६८। यहाँ पिण्डपद गति, लिंग, कषाय व लेश्यारूप ४ हैं। भव्यत्वके जो पण्णट्ठीसे आधे भंग हैं उनको दूने करने पर अर्थात् पण्णट्टीप्रमाण एकगतिसम्बन्धी भंग हैं तो चारोंगतिसम्बन्धी चारपण्णट्टीप्रमाण सर्वभंग हैं। एकगतिके भंगोंसे दूने अर्थात् दोगुणीपण्णट्ठीप्रमाण एकलिंगसम्बन्धी भंग हैं। इनमें (नरकगतिका एक, तिर्यञ्चगतिके ३, मनुष्यगतिके ३ और देवपतिके २) ९ लिंगोंसे गुणाकरनेपर लिंगरूप पिण्डपदके सर्वभंग १ से गुणित दो पण्णट्ठीप्रमाण होते हैं। एकलिंगसम्बन्धी भंगोंसे दूने अर्थात् ४ पण्णीप्रमाण भंग एककषायसम्बन्धी जानना, इनको नरकगतिमें १ वेद (लिंग) सहित चारकषाय अर्थात् (१४४) ४ से, तिर्थञ्चगतिमें तीनवेदसहित ४ कषाय अर्थात् (३४४) १२ से, मनुष्यगतिमें ३ वेदसहित ४ कषाय अर्थात् (३४४) १२ से, देवगतिमें २ वेदसहित चारकषाय अर्थात् (२४४) ८ से इसप्रकार चारोंगतिसम्बन्धी सर्व (४+१३+१२+2) ३६ से गुणित चार पण्णट्टीप्रमाण भंग होते हैं। एककषायसम्बन्धी उपर्युक्त (४ पण्णट्टीप्रमाण) भंगोंसे दूने अर्थात् ८ पण्णट्ठीप्रमाण एकलेश्यासम्बन्धी भंग हैं। इनको नरकमें एकवेद व चारकषायसहित तीनलेश्या (१४४४३) अर्थात् १२, तिर्यञ्चगतिमें तीनवेद व चारकषायसहित ६ लेश्या (३४४४६) अर्थात् ७२, मनुष्यगतिमें तीनवेद व चारकपायसहित ६ लेश्या (३४४४६) अर्थात् ७२ और देवोंमें दो वेद व चारकषायसहित ३ लेश्यासे (२४४४३) अर्थात् २४ इनसे गुणा करनेपर चारोंगति सम्बन्धी (१२+७२+७२+२४) १८०४८-१४४० से गुणित पण्णट्टीप्रमाण यहाँ भंग जानना। यहाँ प्रत्येक व पिण्डपदसम्बन्धी सर्वभङ्ग मिलकर (१+४+१८+१४४+१४४०) १६०७ से गुणित पण्णट्ठीप्रमाणमें एक कम करनेपर जो लब्ध उतनेप्रमाण सर्वपदभंग मिश्रगुणस्थानमें होंगे। (नोट - मिश्रगुणस्थान पर्याप्तअवस्था में ही होता है, देवोंमें पर्याप्तअवस्थामें तीन शुभलेश्या ही होती हैं। देवगति मिश्रगुणस्थानमें इसीलिए तीन लेश्यासे गुणा किया गया है।) असंयतगुणस्थानमें प्रत्येक पद १६, मतिज्ञानके १, श्रुतज्ञानके २, अवधिज्ञानके ४, चक्षुदर्शन ८, अचक्षुदर्शनके १६, अवधिदर्शनके ३२, दानलब्धिके ६४, लाभके १२८, भोगके २५६, उपभोगके ५१२, वीर्यके १०२४, अज्ञानके २०४८, असंयमके ४०९६, असिद्धत्वके ८१९२, जीवत्वके १६,३८४ और भव्यत्वके ३२,७६८ हैं तथा गति-लिंग-कषाय व लेश्यारूप पूर्वोक्त चार व एक सम्यक्त्व ऐसे ५ .. - .-. ...

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