Book Title: Gommatasara Karma kanda
Author(s): Nemichandra Siddhant Chakravarti, Jawaharlal Shastri
Publisher: Shivsagar Digambar Jain Granthamala Rajasthan

View full book text
Previous | Next

Page 785
________________ गोम्मटसार कर्मकाण्ड-७४६ लाभके २५६, भोगलब्धिके ५१२, उपभोगलब्धिके १०२४, वीर्यके २०४८, अज्ञानके ४०९६, असिद्धत्वके ८१९२, उपशमचारित्रके १६३८४ जीवत्वके ३२७६८, भव्यत्वके एकपण्णट्टीप्रमाण, । मनुष्यातिने ? गण और शुगलस्योः अण्णट्टीप्रमाण भङ्ग हैं तथा पिंडपदमें शुक्ललेश्याके ४ गुणी पण्णट्ठीसे दूने अर्थात् ८ गुणी पण्णट्टीप्रमाण एककषायसम्बन्धी भङ्ग हैं इनको ४ कषायसे गुणाकरनेपर चारोंकषायसम्बन्धी (८४४) ३२ गुणी पण्णट्ठीप्रमाण भन्न होते हैं। एककषायके भङ्गोंसे दूने अर्थात् १६ गुणीपण्णट्ठीप्रमाण एकसम्यक्त्व के हैं इनको चारकषायसहित दोसम्यक्त्व से गुणाकरे तो (४४२-८)x१६xपण्णट्ठी १२८ गुणोपण्णट्टीप्रमाण भङ्ग होते हैं। इसप्रकार अवेदअनिवृत्तिकरणमें प्रत्येकपद व पिण्डपदसम्बन्धी भंग मिलकर (८+३२+१२८) १६८ गुणी पण्णट्टी में से एक कम करने पर भंग सर्वपदसम्बन्धी जानना। सूक्ष्मसाम्परायगुणस्थानमें प्रत्येकपदमें मतिज्ञानके १, श्रुतज्ञानके २, अवधिज्ञानके ४, मनःपर्ययज्ञानके ८, चक्षुदर्शनके १६, अचक्षुदर्शनके ३२, अवधिदर्शनके ६४, दानलब्धि के १२८, लाभ के २५६, भोग के ५१२, उपभोगलब्धि के १०२४, वीर्यलब्धिके २०४८, अज्ञानके ४०९६, असिद्धत्वके ८१९२, उपशमचारित्रके १६३८४, जीवत्वके ३२७६८, भव्यत्वके एकपण्णट्टीप्रमाण, मनुष्यगतिके २ पण्णट्टीप्रमाण, शुक्ललेश्या के ४ पण्णद्वीप्रमाण तथा सूक्ष्मलोभके ८ पण्णट्ठीप्रमाण भंग हैं। पिंडपदमें सूक्ष्मलोभसम्बन्धी ८ गुणी पण्णट्टीसे दूने अर्थात् १६ पण्णीप्रमाण एकसम्यक्त्वसम्बन्धी भंग हैं। इनको उपशम व क्षायिकरूप दो सम्यक्त्वोंसे गुणाकरनेपर (२४१६=३२४पण्णट्ठी) ३२ गुणी पण्णट्टीप्रमाण भंग होते हैं। इसप्रकार प्रत्येकपद व पिंडपदके भंग मिलकर (प्रत्येकपदके १६+पदपिंड के ३२) ४८ गुणी पण्णट्ठीप्रमाण में से एक कम करनेपर सर्वपदके भंग सूक्ष्मसाम्परायगुणस्थानमें हैं। उपशान्तकषायगुणस्थानमें प्रत्येकपद मतिज्ञानके १, श्रुतज्ञानके २, अवधिज्ञानके ४, मन:पर्ययज्ञानके ८, चक्षुदर्शनके १६, अचक्षुदर्शनके ३२, अवधिदर्शनके ६४, दानलब्धिके १२८, लाभके २५६, भोगलब्धिके ५१२, उपभोगलब्धिके १०२४, वीर्यलब्धिके २०४८, अज्ञानके ४०९६ असिद्धत्वके ८१९२, उपशमचारित्रके १६३८४, जीवत्वके ३२७६८, भव्यत्वके एकपण्णट्टीप्रमाण, मनुष्यगतिके दोपण्णट्ठीप्रमाण, शुक्ललेश्याके ४ पण्णट्ठीप्रमाण है। पिंडपदमें शुक्ललेश्यासम्बन्धी चारगुणीपण्णट्ठीप्रमाण भंगोंसे दूने अर्थात् ८ से गुणित पण्णडीप्रमाण भंग एकसम्यक्त्वके हैं इनको उपशम व क्षायिकसम्यक्त्वसे गुणा करनेपर (८४२) १६ पण्णट्टीप्रमाण भंग हुए तथा प्रत्येकपदके ८ व पिंडपदके १६ भंग मिलकर २४ गुणी पण्णट्टीमें एककम प्रमाण सर्वपदसंबन्धी भङ्ग यहाँ जानना। क्षपकश्रेणीके अपूर्वकरणगुणस्थानमें प्रत्येकपद मतिज्ञानके १, श्रुतज्ञानके २, अवधिज्ञानके ४, मन:पर्ययज्ञानके ८, चक्षुदर्शनके १६, अचक्षुदर्शनके ३२, अवधिदर्शनके ६४, दानलब्धिके १२८, लाभलब्धिके २५६, भोगलब्धिके ५१२, उपभोगलब्धिके १०२४, वीर्यलब्धिके २०४८, अज्ञानके

Loading...

Page Navigation
1 ... 783 784 785 786 787 788 789 790 791 792 793 794 795 796 797 798 799 800 801 802 803 804 805 806 807 808 809 810 811 812 813 814 815 816 817 818 819 820 821 822 823 824 825 826 827 828 829 830 831 832 833 834 835 836 837 838 839 840 841 842 843 844 845 846 847 848 849 850 851 852 853 854 855 856 857 858 859 860 861 862 863 864 865 866 867 868 869 870 871