Book Title: Gommatasara Karma kanda
Author(s): Nemichandra Siddhant Chakravarti, Jawaharlal Shastri
Publisher: Shivsagar Digambar Jain Granthamala Rajasthan

View full book text
Previous | Next

Page 777
________________ गोम्मटसार कर्मकाण्ड - ७३८ दूना करके उसमें से एक कमकरके जो प्रमाण हो उतना प्रथमपदसे लेकर विवक्षितपद पर्यन्त सर्वपदों के भंगोका जोड़रूप सर्वधन होता है। अब प्रत्येक व पिंडपदोंकी भङ्गसंख्या तथा प्रत्येकपदभङ्ग व पिण्डपदभंगोंको मिलाकर सर्वपदसंख्या बताते हैं तेरिच्छा हु सरित्था, अविरददेसाण खयियसम्मत्तं । मोत्तूण संभवं पडि, खयिगस्सवि आणए भंगे ॥ ८६२ ॥ उद्दतिरिच्छपदाणं, दव्वसमासेण होदि सव्वधणं । सव्वपाणं भंगे, मिच्छादिगुणेसु नियमेण ||८६३ ॥ मिच्छादीण दुति दुसु, अपुत्र अणियखिवगसमगेसु । सुहुमुवसमगे संते, सेसे पत्तेयपदसंखा || ८६४ ॥ पण्पर सोलटार, बीगुवीसं च वीसमुगुवीसं । इगिवीस वीसचदुदसतेरसपणगं जहाकमसो || ८६५ ।। मिच्छादिट्टिप्पहुदिं, खीणकसाओति सव्वपदभंगा । पण्णठि च सहस्सा, पंचसया होंति छत्तीसा ।।८६६ ।। तग्गुणगारा कमसो, पण णउदेयत्तरीसयाण दलं । ऊणट्ठारसयाणं, दलं तु सत्तहियसोलसयं ॥ ८६७ ।। तेवत्तरं सयाई, सत्तावट्ठी य अविर सम्मे । सोलस चेव सयाई, चउसट्ठी खयियसम्मस्स ॥। ८६८ ॥ ऊणत्तीससयाई, एक्काणउदी य देसविरदम्मि । छावत्तरि पंचसया, खड़यणरे णत्थि तिरियम्मि ॥८६९ ।। इगदानं च सयाई, चउदालं च य पमत्त इदरे य । पुव्युवसमगे वेदाणियट्टि भागे सहस्समद्रूणं ॥ ८७० ॥

Loading...

Page Navigation
1 ... 775 776 777 778 779 780 781 782 783 784 785 786 787 788 789 790 791 792 793 794 795 796 797 798 799 800 801 802 803 804 805 806 807 808 809 810 811 812 813 814 815 816 817 818 819 820 821 822 823 824 825 826 827 828 829 830 831 832 833 834 835 836 837 838 839 840 841 842 843 844 845 846 847 848 849 850 851 852 853 854 855 856 857 858 859 860 861 862 863 864 865 866 867 868 869 870 871