Book Title: Gommatasara Karma kanda
Author(s): Nemichandra Siddhant Chakravarti, Jawaharlal Shastri
Publisher: Shivsagar Digambar Jain Granthamala Rajasthan
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गोम्मटसार कर्मकाण्ड-७३३
क्षेप ३ ये सर्व मिलकर गुणकार (१+६+११+६) २४ और क्षेप (६+११+६+३) २६ हैं। यहाँ गुण्य ६ को गुणकार २४ से गुणाकरके क्षेपराशि २६ मिलानेसे (६४२४+२६) १७० भङ्ग हुए। अवेदअनिवृत्तिकरण और सूक्ष्मसाम्परायगुणस्थानमें भी जातिपद अपूर्वकरणगुणस्थानवत् ही जानना, किन्तु यहाँ विशेषता यह है कि औदयिकभावके ५ जातिपद हैं शेष सर्वकथन पूर्ववत् ही जानना। यहाँ गुण्य ५, प्रत्येकभङ्गमें गुणकार १, क्षेप ६; द्विसंयोगीभङ्गमें गुणकार ६, क्षेप ११; त्रिसंयोगीभगमें गुणकार ११ ब क्षेप ६; चतुसंयोगीभंगों में गुणकार ६, स्वसंयोगीभगमें क्षेप ३ इसप्रकार सर्व मिलकर गुणकार (१+६+११+६) २४ और क्षेप (६+११+६+३) २६ हैं। यहाँ गुण्य ५ को गुणकार २४ से गुणाकरके क्षेपराशि २६ जोड़नेसे (५४२४+२६) १४६ भंग हैं। क्षीणकषायगुणस्थानमें भी जातिपद पूर्वोक्त ही हैं। किन्तु विशेषता यह है कि औदयिकके ४ ही हैं अत: यहाँ गुण्य ४ गुणकार पूर्वोक्त २४ और क्षेप भी पूर्वोक्त २६ हैं। गुण्य ४ को गुणकार २४ से गुणाकरके क्षेपराशि २६ मिलानेसे (४५२४+२६) १२२ भङ्ग होते हैं।
सयोगकेवली गुणस्थानमें क्षायिकभावके ज्ञान, दर्शन, सम्यक्त्व, चारित्र व लब्धि ये ५, औदयिकके ३ और पारिणामिकका भव्यत्वरूप एक ये जातिपद हैं। यहाँ गुण्य ३, प्रत्येकभंगमें गुणकार १ व क्षेप ६, द्विसंयोगीभगमें गुणकार ६ ३ क्षेप ५, त्रिसंयोगी भङ्गमें गुणकार ५ एवं स्वसंयोगीमें क्षायिकलब्धिरूप क्षेप १, क्योंकि किसी एक क्षायिकलब्धिमें अन्य क्षायिकलब्धि पाई जाती है। इसप्रकार सर्व मिलकर गुणकार (१+६+५) १२ और क्षेप (६+५+१) १२ हैं अत: यहाँ गुण्य ३ को गुणकार १२ से गुणाकरके क्षेपराशि १२ मिलानेसे (३४१२+१२) ४८ भङ्ग। अयोगकेवलीगुणस्थानमें जातिपद सयोगकेवलीगुणस्थानवत् ही है, किन्तु विशेषता यह है कि यहाँ औदयिकके २ ही जातिपद हैं अत: गुण्य २ को गुणकार पूर्वोक्त १२ से गुणा करके क्षेपराशि भी पूर्वोक्त १२ मिलानेसे (२४१२+१२) ३६ भंग होते हैं।
सिद्धोंके क्षायिकभावके सम्यक्त्व, ज्ञान, दर्शन, लब्धि ये चार और पारिणामिकभावका जीवत्वरूप एक इसप्रकार जातिपद ५ हैं। यहाँ प्रत्येकभनके क्षेप ५ एवं द्विसंयोगीभङ्गके क्षेप ४ मिलकर (५+४) ९ भङ्ग जानना।
गुणस्थान
गुण्य
गुणकार ।
क्षेप
।
भङ्गसंख्या
मिथ्यात्व
सासादन
सम्यग्मिथ्यात्व मिश्र
असंयत