Book Title: Gommatasara Karma kanda
Author(s): Nemichandra Siddhant Chakravarti, Jawaharlal Shastri
Publisher: Shivsagar Digambar Jain Granthamala Rajasthan
View full book text
________________
-in...
more
-
-
•
गोम्मटसार कर्मकाण्ड-७३२ ६ तथा प्रत्येकभंगमें गुणकार एक क्षेप ८; द्विसंयोगीभंगोंमें गुणकार ८ व क्षेप १५; त्रिसंयोगीभगोंमें गुणकार १५ व क्षेप ८, चतु:संयोगीभंगोंमें गुणकार ८; स्वसंयोगीभंगोंमें क्षेप ३। ये सर्व मिलकर गुणकार (१+८+१५+८) ३२ और क्षेप (८+१५+८+३) ३४ हैं अत: गुण्य ६ को गुणकार ३२ से गुणाकरके क्षेपराशि ३४ मिलानेसे (६४३२+३४) २२६-२२६ भंग होते हैं।
उपशमश्रेणीके अपूर्वकरण और सवेदअनिवृत्तिकरणमें औपशमिकके दो (सम्यक्त्वचारित्र), क्षायिकका एकसम्यक्त्व, क्षायोपशमिकभावके ज्ञान-दर्शन-लब्धि ये तीन, औदयिकके छह और पारिणामिकका एकभव्यत्वरूप जातिपद है। यहाँ गुण्य छह प्रत्येकभंगमें गुणकार एक, क्षेप ७; द्विसंयोगीभंगोंमें गणकार (७. श्लेष १६, दियोगी अंगों में गुजार १६, क्षेप १३; चतु:संयोगीभंगोंमें गुणकार १३, क्षेप ३, पंचसंयोगीभंगोंमें गुणकार ३ यहाँ क्षायिकसम्यक्त्व होनेपर उपशमचारित्र पाया जाता है इसलिए पंचसंयोगीभंग भी है। स्वसंयोगीभंगोंमें क्षेप ३ ये सर्व मिलकर गुणकार (१+७+१६+१३+३) ४० और क्षेप (७+१६+१३+३+३) ४२ हैं अत: गुण्य ६ को गुणकार ४० से गुणाकरके क्षेपराशि ४२ जोड़नेसे (६x४०+४२) २८२-२८२ भंग हैं। वेदरहित अनिवृत्तिकरण और सूक्ष्मसाम्परायगुणस्थानमें औपशमिकभावोंके सम्यक्त्व और चारित्र, क्षायिक का एक सम्यक्त्व और क्षायोपशमिकके ज्ञान-दर्शन और लब्धि ये तीन, औदयिकभावोंके पाँच और पारिणामिकका एक भव्यत्वरूप जातिपद हैं। यहाँ गुण्य पाँच तथा प्रत्येकभंगमें गुणकार एक, क्षेप ७; द्विसंयोगीभंगोंमें गुणकार ७, क्षेप १६; त्रिसंयोगीभंगोंमें गुणकार १६, क्षेप १३; चतु:संयोगीभगोंमें गुणकार १३, क्षेप ३; पंचसंयोगीभंगोंमें गुणकार ३, स्वसंयोगीभगोंमें क्षेप ३ ये सर्व मिलकर गुणकार (१+७+१६+१३+३) ४० और क्षेप (७+१६+१३+३+३) ४२ हैं अत: गुण्य ५में गुणकार ४० से गुणा करके क्षेपराशि ४२ जोड़नेपर (५५४०+४२) २४२ भंग हैं। यहाँ कषायका एकजातिपद ही ग्राह्य है अतः कषायभागोंका विशेष कथन नहीं किया। उपशान्तकषायगुणस्थानमें औपशमिकभावके सम्यक्त्व-चारित्र, क्षायिकका सम्यक्त्व, क्षायोपशमिकके ज्ञान-दर्शन व लब्धि ये ३, औदयिकके चार और पारिणामिकका भव्यत्वरूप एकजातिपद है। यहाँ गुण्य ४, प्रत्येकभंगमें गुणकार १, क्षेप ७; द्विसंयोगीभंगमें गुणकार ७, क्षेष १६; त्रिसंयोगीभंगोंमें गुणकार १६ व क्षेप १३; चतु:संयोगीभंगोंमें गुणकार १३ व क्षेप ३; पंचसंयोगीभंगोंमें गुणकार ३, स्वसंयोगीमें क्षेप ३ इसप्रकार सर्वमिलकर गुणकार (१+७+१६+१३+३) ४० एवं क्षेप (७+१६+१३+३+३) ४२ हैं। गुण्य ४ को गुणकार ४० से गुणाकरके क्षेपराशि ४२ मिलानेसे (४४४०+४२) २०२ भङ्ग होते हैं।
क्षपकश्रेणीके अपूर्वकरण और सवेद अनिवृत्तिकरणगुणस्थानमें क्षायिकभावके सम्यक्त्व और चारित्र, क्षायोपशमिकभावके ज्ञान-दर्शन व लब्धि ये ३, औदयिकके ६ एवं पारिणामिकका एक भव्यत्वरूप जातिपद है। यहाँ गुण्य ६, प्रत्येकभंगम गुणकार १, क्षेप ६; द्विसंयोगीभगमें गुणकार ६, क्षेप ११; त्रिसंयोगीभंगोंमें गुणकार ११, क्षेप ६; चतुःसंयोगीमें गुणकार ६, पंचसंयोगीभंग नहीं हैं । स्वसंयोगीमें