Book Title: Gommatasara Karma kanda
Author(s): Nemichandra Siddhant Chakravarti, Jawaharlal Shastri
Publisher: Shivsagar Digambar Jain Granthamala Rajasthan
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गोम्मटसार कर्मकाण्ड-३६२
सासादन
सासादन व मिश्रगुणस्थान में बद्धायुष्क व अबद्धायुष्क की अपेक्षा सत्त्वस्थान और
भङ्ग तथा उनमें पायी जानेवाली प्रकृतियों की सन्दृष्टि - मद्धायुष्क की| १ न. ति. १४१ । १४१ (१४८-७, भुज्यमान व बध्यमान अपेक्षा । १ न. म.
आयुनिना दो आयु, तीर्थकर और प्रथम स्थान १ ति, म.
आहारकचतुष्क) सासादनगुणस्थानको चारों ही आयु बाँधने वाला जीव प्राप्त कर सकता है। मिथ्यात्वगुणस्थान में बद्धायुष्कापेक्षा द्वितीयस्थान में १२ भंग कहे हैं उसी प्रकार यहाँ भी १२ भद्र होते हैं, किन्तु पुनरुक्तभक २, समभङ्ग ५ इन ७ के बिना शेष ५ ही भग ग्रहण किये हैं।
सासादन
अबद्धायुष्क । १ न, १४० उपर्युक्त १४१ प्रकृति में से बध्यमानकी अपेक्षा: ......ति..................! आयु कम करने पर १४० प्रकृतिरूप यह स्थान प्रथम स्थान
होता है। इसके चार भंग चारोंगति की अपेक्षा
सासादन
१
।
बद्धायुष्ककी
अपेक्षा द्वितीय स्थान
१४५ | १४५ (१४८-३, भुज्यमानमनुष्यायु और
बध्यमानदेवायुमिना २ आयु और तीर्थङ्कर)
मनुष्य, आहारकचतुष्क का बन्ध करलेने के बाद इस गुणस्थान में आ सकता है। किसी आचार्य के मतसे इस अवस्था में आहारकचतुष्क का सत्त्व नहीं है अर्थात् १४१ प्रकृतिका सत्त्व होता है।
बद्धायुष्क की अपेक्षा कथित द्वितीय स्थानकी १४५ प्रकृतियों में से बध्यमानदेवायु कम करने पर १४४ प्रकृति रहीं।
सासादन
१४४
अबद्धायुष्क की अपेक्षा द्वितीय स्थान |