Book Title: Gommatasara Karma kanda
Author(s): Nemichandra Siddhant Chakravarti, Jawaharlal Shastri
Publisher: Shivsagar Digambar Jain Granthamala Rajasthan
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गोम्मटसार कर्मकाण्ड-५४६
अग्नि (तेज) व वायुकाय और सूक्ष्म-बादर-साधारणवनस्पतिकायसम्बन्धी कार्मणकालमें एक-एक भंगकी अपेक्षा ६ भंग हैं। नारकीके कार्मणकालमें एक ही भंग है, लब्ध्यपर्याप्तक-सूक्ष्म-बादरकी अपेक्षा पृथ्वी-जल-तेज-वायुकाय और साधारणवनस्पतिके १०, प्रत्येकवनस्पति, विकलत्रय, सञ्जीअसझीपञ्चेन्द्रिय तिर्यञ्च व मनु (१०+) इन १७ प्रकार के जोवों के कार्मगकालसम्बन्धी एक-एक ही भंग होनेसे १७ भंग हैं। इसप्रकार २१ प्रकृतिक उदयस्थानके सर्व (१+१+८+८+८+१०+६+१+१७) ६० भंग हैं।
२४ प्रकृतिक उदयस्थान शरीरमिश्रकालमें होता है। यहाँ बादरपृथ्वी-अप्तेज-वायु और प्रत्येकवनस्पतिकायमें यशस्कीर्तियुगलकी अपेक्षा (५४२) १० भंग होते हैं। सूक्ष्मपृथ्वी-जल-तेजवायुकाय तथा बादर-सूक्ष्मसाधारणकायमें एक-एक भंगकी अपेक्षा ६ भंग होते हैं एवं ग्यारहप्रकारके एकेन्द्रियलब्ध्यपर्याप्तजीवोंके शरीरमिश्रकालमें भी इस स्थानका उदय है अत: यहाँ एक-एक भंगकी अपेक्षा ११ भंग हुए। इसप्रकार २४ प्रकृतिकस्थानमें सर्व (१०+६+११) २७ भंग हुए।
२५ प्रकृतिकस्थानमें देव-आहारक और नारकीके तो एक-एक भंगकी अपेक्षा तीनभंग तथा बादरपृथ्वी-अप्-तेज-वायु एवं प्रत्येकवनस्पतिकायके शरीरपर्याप्तिकालमें यशस्कीर्ति युगलकी अपेक्षा दो-दो भंग होनेसे (५४२) १० भंग हैं, सूक्ष्मपृथ्वी-अप-तेज-वायुकाय और सूक्ष्म - बादरसाधारणवनस्पतिकायके एक-एक भंगकी अपेक्षा ६ भंग हैं। इसप्रकार २५ प्रकृतिक स्थानमें (३+१०+६) १९ भङ्ग हुए। .
२६ प्रकृतिक स्थानमें द्वीन्द्रिय-त्रीन्द्रिय-चतुरिन्द्रिय और असञ्जीपञ्चेन्द्रियके शरीरमिश्रकालमें यशस्कीर्तियुगलकी अपेक्षा दो-दो,भंग होनेसे (४४२) ८ भंग होते हैं। सञ्जीतिर्यञ्च और मनुष्यमें ६ संहनन ६ संस्थान तथा सुभग-आदेय और यशस्कीर्तियुगलोंकी अपेक्षा (६४६४२४२४२) २८८+२८८-५७६ भंग हैं। तीर्थंकरप्रकृतिरहित सामान्यसमुद्घातकेवलीके ६ संस्थानोंके परिवर्तनसे छहभंग हैं। लब्ध्यपर्याप्तकोंके एक-एक भंगकी अपेक्षा ६ भंग हैं। बादरउद्योतसहित बादरपृथ्वीकायके शरीरपर्याप्तिकालमें आतप-उद्योतसहित दोस्थानोंमें यशस्कीर्तियुगलकी अपेक्षा दो-दो भंग होनेसे २४२-४ भंग हैं तथा उद्योतसहित बादरअप्काय और प्रत्येक वनस्पतिकायमें यशस्कीर्तियुगलकी अपेक्षा दो-दो भङ्ग होनेसे ४ भद्र, बादरपृथ्वी-अप्-तेज-वायु व प्रत्येक वनस्पतिकायके उच्छ्वासपर्याप्तिकालमें यशस्कीर्तियुगलकी अपेक्षा दो-दो भंग होनेसे ५४२=५० भंग तथा सूक्ष्मपृथ्वी-अप्-तेज और वायुकाय एवं सूक्ष्म-बादरसाधारणवनस्पतिकायमें एक-एक भंग होनेसे ६ भंग हैं। इसप्रकार २६ प्रकृतिक स्थानमें सर्व (८+५७६+६+६+४+४+१०+६) ६२० भंग होते हैं।
२७ प्रकृतिक उदयस्थानमें तीर्थङ्करसमुद्घातकेवलीके शरीरमिश्रकालमें एक भङ्ग है। देव-नारकी और आहारकके शरीरपर्याप्तिकालमें एक-एक भंगकी अपेक्षा तीन, उच्छ्वासपर्याप्तिकालमें बादर