Book Title: Gommatasara Karma kanda
Author(s): Nemichandra Siddhant Chakravarti, Jawaharlal Shastri
Publisher: Shivsagar Digambar Jain Granthamala Rajasthan
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गोम्मटसार कर्मकाण्ड-६७३ प्रत्ययका, मध्यमस्थान नहीं है, उत्कृष्टस्थान ३ प्रत्ययका है। सूक्ष्मसाम्परायगुणस्थानमें जघन्यादि भेदबिना २ प्रत्ययका एक ही स्थान है, उपशान्तकषायादिगुणस्थानोंमें जघन्यादि भेदबिना एक-एक ही स्थान है एवं अयोगीगुणस्थानमें शून्य है।
गुणस्थानोंकी अपेक्षा जघन्य-मध्यम व उत्कृष्ट स्थानसम्बन्धी सन्दृष्टि
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गुणस्थान
मिथ्यात्व
सासादन
मिश्न
असंयत
देशसंयत
अप्रमत्त
अपूर्वकरण अनिवृत्ति.
सूक्ष्मसाम्प.
कषाय
क्षीणकषाय
सयोगकेवली
अयोगकेवली
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जन्धप्रत्ययके जघन्यस्धान
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बन्धप्रत्ययोंके मध्यमस्थान
१० से १५
१० से १५
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बंधप्रत्ययोंके उत्कृष्टस्थान
अब उपर्युक्त प्रत्ययस्थानोंके प्रकारोंका कथन करते हैं
एवं च तिण्णि पंच य हेढुवरीदो दु मज्झिमे छक्कं । मिच्छेठाणपयारा इगिदुगमिदरेसु तिण्णि देसोत्ति ॥७९३॥
अर्थ- मिथ्यात्वगुणस्थानके ९ स्थानोंमें से १०-११ व १२ प्रत्ययरूप कूट तीन अधस्तन और १८-१७ व १६ प्रत्ययरूप कूट तीन उपरितनस्थानोंमें तो क्रमसे १-३ व ५ कूट भेद हैं तथा १३-१४ ब १५ प्रत्ययरूप कूट मध्यवर्ती तीनस्थानोंके ६-६ भेद हैं; सासादनसे देशसंयतगुणस्थानपर्यन्त प्रथम व अन्तिमस्थान कूट १-१ प्रकार, द्वितीय कूट और द्विचरमस्थान कूट २-२ प्रकार तथा द्वितीय व द्विचरमस्थानके मध्यवर्ती जो स्थान कूट हैं वे तीन-तीन प्रकारके हैं; प्रमत्तसे सयोगीगुणस्थानपर्यन्त सभीस्थान कूट एक-एक प्रकारके ही हैं।