Book Title: Gommatasara Karma kanda
Author(s): Nemichandra Siddhant Chakravarti, Jawaharlal Shastri
Publisher: Shivsagar Digambar Jain Granthamala Rajasthan
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गोम्मटसार कर्मकाण्ड - ७१७
पूर्वोक्त गाथामें कथित औदयिकभावके स्थानोंमें भावोंके बदलनेसे जो भंग बनते हैं उनको गुणस्थानोंमें कहते हैं
लिंगकसाया लेस्सा संगुणिदा चदुगदीसु अविरुद्धा । बारस बावत्तरियं तत्तियमेत्तं च अडदानं ॥ ८२८ ॥
वरि विसेसं जाणे सुर मिस्से अविरदे य सुहलेस्सा। चवीस तत्थ भंगा असहायपरक्कमुट्ठिा ॥ ८२९ ॥ जुम्मं ॥
अर्थ - नरकादि चारगतियों में विरोधरहित. यथासम्भव लिंग, कषाय और लेश्याका परस्पर बवास गुणा करनेपर क्रमसे १२-७२-७२ व ४८ भंग होते हैं, किन्तु इतना विशेष है कि देवगतिसम्बन्धी मिश्र असंयतगुणस्थान में तीन शुभलेश्याएँ हैं, क्योंकि भवनत्रिक्रदेवोंकी अपर्याप्तावस्थामें तृतीय- चतुर्थगुणस्थान सम्भव नहीं हैं। अतः स्त्री-पुरुषवेद, चारकषाय व ३ शुभलेश्याकी अपेक्षा परस्परगुणा करनेपर २४ भंग होते हैं। ऐसा असहायपराक्रमी ( वर्धमानस्वामी) जिनेन्द्रने कहा है ।
विशेषार्थ – नरकगतिमें नपुंसकवेद, चारकषाय और ३ अशुभलेश्याका परस्पर गुणाकरनेसे (१x४×३) १२ भंग हैं, तिर्यंच व मनुष्यगतिमें तीनवेद, चारकषाय व ६ लेश्याका परस्पर गुणा करनेपर (३xxx६) ७२-७२ भंग, देवगतिमें स्त्री व पुरुषवेद, चारकषाय व ६ लेश्याका परस्पर गुणा करनेपर (२४x६) ४८ भंग हैं । यहाँ देवगतिमें ६ लेश्यासे गुणा करनेका कारण यह है कि भवनत्रिकदेवोंके अपर्याप्तावस्था में तीन अशुभलेश्या होती हैं। इसप्रकार चारोंगतिसम्बन्धी सर्व ( १२+७२+७२+४८) २०४ भंग मिध्यात्व और सासादनगुणस्थानसम्बन्धी गुण्य (जिसमें गुणा किया जावे) राशि है, किन्तु देवगतिसम्बन्धी मिश्र व असंयतगुणस्थानमें स्त्री व पुरुषवेद, चारकषाय व ३ शुभलेश्याका परस्पर गुणा करनेपर (२x४×३) २४ भंग होते हैं । यहाँ ३ शुभलेश्या का ही गुणा करनेका कारण यह है कि भवनत्रिककी अपर्याप्तावस्थामें तृतीय व चतुर्थ गुणस्थान नहीं है। इसप्रकार चारोंगतिसम्बन्धी मिश्र व असंयत गुणस्थानमें क्रमसे १२+७२ + ७२+२४ भंग मिलकर सर्व १८० हैं । तिर्यञ्च व मनुष्यगतिके देशसंयत गुणस्थान में तीन लिंग चारकषाय व तीन शुभलेश्याका परस्पर गुणा करनेपर ( ३x४×३) ३६३६ भंग तथा इन दोनोंको मिलानेसे (३६ + ३६) देशसंयतगुणस्थानसम्बन्धी सर्व ७२ भंग हैं। मनुष्यगति में प्रमत्त व अप्रमत्तगुणस्थान में ३ लिंग, ४ कषाय व ३ शुभलेश्या का परस्पर गुणा करनेपर (३x४०३) ३६ भंग हैं, अपूर्वकरण व अनिवृत्तिकरण के सवेदभागमें ३ लिंग, ४ कषाय व १ शुक्ललेश्याको परस्पर गुणा करनेसे १२ भंग हैं। तथा अवेदभागमें ४ कषाय व शुक्ललेश्याकी अपेक्षा चारभंग हैं, अनिवृत्तिकरणके मानकषायवाले भागमें ३ कषाय व शुक्ललेश्या की अपेक्षा ३ भंग, मायावाले भागमें दो कषाय व शुक्ललेश्याकी अपेक्षा २ भंग, लोभकषायवाले भागमें बादरलोभ व शुक्ललेश्याकी अपेक्षा एक ही भंग