Book Title: Gommatasara Karma kanda
Author(s): Nemichandra Siddhant Chakravarti, Jawaharlal Shastri
Publisher: Shivsagar Digambar Jain Granthamala Rajasthan

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Page 762
________________ गोम्मटसार कर्मकाण्ड-७२३ है। इसप्रकार गुणकार तो (१+३+२) ६ और क्षेप (३+२) ५ हैं। इसलिए सासादनगुणस्थानसम्बन्धी पूर्वोक्त गुण्यराशि २०४ को गुणकार ६ से गुणाकरके तथा क्षेपरूप राशि ५ मिलानेसे (२०४४६+५) १२२९ भंग हुए तथा चक्षुदर्शनरहित सासादनगणस्थानमें क्षायोपशमिकके ८ भावरूप एकस्थान, औदयिकके ७ भावरूप एकस्थान और पारिणामिकका भव्यत्वरूप एकस्थान ऐसे तीनस्थानी के प्रत्येकभङ्गमें क्षेप एक अन्य सब पुनरुक्त हैं, द्विसंयोगीभंगोंमें गुणकार एक और क्षेप एक, त्रिसंयोगीभङ्गोंमें गुणकार एक, इसप्रकार यहाँ सर्व मिलकर गुणकाररूप भङ्ग २ और क्षेपरूप भङ्ग भी दो हैं। अतः पूर्वोक्त गुण्यराशि १२ को गुणकार २ से गुणाकरके क्षेपरूप दो भङ्ग मिलानेसे (१२४२+२) २६ भङ्ग हुए और चक्षुदर्शनसहित व रहित भङ्गोंको परस्परमें जोड़नेसे सासादनमुणस्थानसम्बन्धी सर्व भङ्ग (१२२९+२६) १२५५ होते हैं। मिश्रगुणस्थानमें क्षायोपशमिकके ५१ व ९ भावरूप दो स्थान, औदयिकके ७ भावरूप एकस्थान और पारिणामिकका भव्यन्वरूप एकस्थान ऐसे ४ स्थानोंके प्रत्येक भंगमें गुणकार एक, क्षेप ३; द्विसंयोगी भंगोंमें गुणकार ३ व क्षेप २; त्रिसंयोगीभंगोंमें गुणकार २ इसप्रकार यहाँ सर्व गुणकार तो (१+३+२) ६ और क्षेप (३+२) ५ जानना। पूर्वोक्त गुण्य १८० में गुणकार ६ का गुणाकरके और क्षेपरूप ५ भंग जोड़नेसे सर्व (१८०४६+५) १०८५ भंग होते हैं। असंयतगुणस्थानमें औपशमिकका उपशमसम्यक्त्वरूप एक, क्षायोपमिकके १२ व १० भावरूप २, औदयिकके ७ भावरूप एक और पारिणामिकका भव्यत्वरूप १ ऐसे ५ स्थान हैं। उनमें प्रत्येक भंगमें गुणकार एक, क्षेप ४; द्विसंयोगीभंगोंमें गुणकार चार व क्षेप ५; त्रिसंयोगीभंगोंमें गुणकार ५ और क्षेप २, चतु:संयोगीभंगोंमें गुणकार २ इसप्रकार सर्व गुणकार (१+४+५+२) १२ और क्षेप (४+५+२) ११ हैं। अत: पूर्वोक्त गुण्यराशि १८० में गुणकार १२ का गुणाकरके क्षेपरूप ११ भंग जोड़नेपर (१८०४१२+५१) २१७१ भंग होते हैं। क्षायिकसम्यग्दृष्टिके क्षायिकभावका क्षायिकसम्यक्त्वरूप एक, क्षायोपशमिकके १२ व १० भावरूप दो, औदयिकके ७ भावरूप एक, पारिणामिकका भव्यत्वरूप एक, ऐसे ५ स्थानोंके प्रत्येकभंगोंमें क्षेप एक; द्विसंयोगीभंगोंमें गुणकार एक, क्षेप ३; त्रिसंयोगीभंगों में गुणकार ३, क्षेप दो; चतुःसंयोगीभोंमें गुणकार दो हैं, अवशेष गुणकार व क्षेप पुनरुक्त हैं। इसप्रकार यहाँ सर्व गुणकार (१+३+२) ६ और क्षेप भी (१+३+२) ६ ही हैं। अतः पूर्वोक्त गुण्य १०४ में गुणकार ६ का गुणाकरके क्षेपरूप ६ मिलानेसे सर्व (१०४४६+६) ६३० भंग होते हैं। इन ६३० भंगोंमें उपर्युक्त २१७१ भंग मिलानेसे असंयतगुणस्थानसम्बन्धी (२१७१+६३०) २८०१ भंग होते हैं। देशसंयतगुणस्थानमें उपशमभावका उपशमसम्यक्त्वरूप एक, क्षायोपशमिकके १३ व ११ भावरूप दो, औदयिकके ६ भावरूप एक, पारिणामिकका भव्यत्वरूप, एक इसप्रकार पाँचस्थानोंके प्रत्येकभंगोंमें गुणकार एक, क्षेप ४; द्विसंयोगीभंगोंमें गुणकार चार, क्षेप ५; त्रिसंयोगीभंगोंमें गुणकार ५, क्षेप २; चतुःसंयोगी गुणकार दो ऐसे सर्व मिलकर गुणकार (१+४+५+२) ५२ और क्षेप (४+५+२)

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