Book Title: Gommatasara Karma kanda
Author(s): Nemichandra Siddhant Chakravarti, Jawaharlal Shastri
Publisher: Shivsagar Digambar Jain Granthamala Rajasthan

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Page 760
________________ गोम्मटसार कर्मकाण्ड-७२१ देशसंयतमें ६) उपशमश्रेणीसम्बन्धी अपूर्वकरणादि चारगुणस्थानोंमें गुणकार ४० तथा क्षेप एक कम अर्थात् ३९ है। __ उपर्युक्त गुण्यराशिको गुणकारसे गुणाकरके क्षेपरूपराशि मिलानेसे भंगोंकी संख्या क्रमसे मिथ्यात्वगुणस्थानमें १८८३, सासादनगुणस्थानमें १२५५, मिश्रगुणस्थानमें १०८५, असंयतगुणस्थानमें २८ देशासंगटामथानमें ६-९, सम्पत्तादि दोगुणस्थानों में ११०९-११०९ भंग हैं। क्षपकश्रेणीकी अपेक्षा अपूर्वकरण, अनिवृत्तिकरणगुणस्थानके पाँच भाग, सूक्ष्मसाम्पराय और क्षीणकषायगुणस्थान इन ८ क्षपकस्थानोंमें क्रमसे अपूर्वकरणमें ५ कम दसगुने छब्बीस (२५९, २५९, १९, ७९, ५९, ३९, ३९ व ३९) सयोगकेवलीके ७, अयोगीके ७, तथा सिद्धोंके ३ भंग जानने चाहिए। उपशमश्रेणीके चारगुणस्थानोंमें एक अधिक क्षपकश्रेणीसे दुगुणे भंग हैं। अर्थात् अपूर्वकरण और सवेदअनिवृत्तिकरणमें (२५९४२+१)=५१९ भंग हैं। इसीप्रकार १९९, १५९, ११९, ७९, ७९, ७९ भंग जानने ॥८३४८४३॥ विशेषार्थ – जिससे गुणा किया जावे उसको गुणकार और जिसको मिलाया जावे उसे क्षेप कहते हैं। भावोंके जो स्थान कहे हैं वे पृथक्-पृथक् रूपमें प्रत्येकभंग होते हैं। यहाँ औदयिकभावके स्थानरूप जो प्रत्येक भंग हैं वे तो गुणकार तथा शेषभावोंके स्थानरूप प्रत्येकभंग क्षेपरूप जानना। इसीप्रकार द्विसंयोगी त्रिसंयोगी आदि भंगोंमें भी औदयिकभावके संयोगसे जो द्विसंयोगी भंग बने हैं वे गुणकार रूप हैं और जहाँ औदयिक भावका तो संयोग नहीं है अन्यभावोंके संयोगसे ही द्विसंयोगी आदि भंग होते हैं वे भंग क्षेपरूप जानना | गुणकार (औदयिकभावके प्रत्येक या द्विसंयोगादि) से गुण्यराशिको गुणा करनेपर जो लब्ध आवे उसमें क्षेपरूप भंगोंकी संख्या मिलानेसे भंगोंका जितना प्रमाण प्राप्त हो उतने ही भंग यथासम्भव भावोंके बदलनेसे भी होते हैं। यहाँ मिथ्यात्वगुणस्थानमें क्षयोपशमभावके १० व ९ भावरूप दोस्थान, औदयिकके ८ भावरूप एकस्थान, पारिणामिकके जीवत्वसहित भव्य और अभव्यरूप दो स्थान इसप्रकार सर्व (२+१+२) ५ स्थान हुए, इनके प्रत्येकभंग ५ हैं। यहाँ औदयिक का ८ भावरूप एकस्थान तो प्रत्येक भंग में गुणकार है एवं मिश्रके (क्षायोपशमिक भावके) २ व पारिणामिकभावके दोस्थान ये (२+२) ४ भंग क्षेपरूप जानना। द्विसंयोगीभगोंमें औदयिकके ८ भावरूप स्थानसहित क्षायोपशमिकके १० व ९ भावके स्थानरूप दोभंग और पारिणामिकके भव्य या अभव्यरूप स्थानके दो भंग ऐसे ४ भंग तो गुणकार एवं क्षायोपशमिकके १० भावरूप स्थानसहित पारिणामिकके भव्य-अभव्यरूप दोस्थानोंके २ भंग तथैव क्षायोपशमिकके ९ भावरूप स्थानसहित उन्हीं पारिणामिक के दोस्थानोंके संयोगरूप दोभंग इसप्रकार चारभंग क्षेपरूप जानना। तथैव त्रिसंयोगीभगोंमें भी औदयिकभावके ८ भावरूप एकस्थान और क्षायोपशमिकभावके १० भेदरूप स्थानसहित पारिणामिकभावके दो स्थानोंकी अपेक्षा दो भंग हैं और क्षायोपशमिकके ९ भावरूप

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