Book Title: Gommatasara Karma kanda
Author(s): Nemichandra Siddhant Chakravarti, Jawaharlal Shastri
Publisher: Shivsagar Digambar Jain Granthamala Rajasthan
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गोम्मटसार कर्मकाण्ड- ७२४
११ हैं । अतः पूर्वोक्त गुण्य ७२ में गुणकार १२ से गुणाकरके क्षेपरूप ११ भंग जोड़नेसे (७२ १२+११) ८७५ भंग होते हैं तथा क्षायिकसम्यक्त्वमें उपशमसम्यक्त्वका स्थान नहीं है, क्षायिकका ही स्थान है अन्य कथन पूर्ववत् जानना । यहाँ प्रत्येकभंगोंमें क्षेप एक; द्विसंयोगी भंगोंमें गुणकार एक क्षेप ३, त्रिसंयोगीभंगोंमें गुणकार ३ व क्षेप २, चतुः संयोगी में गुणकार दो हैं । अवशेष गुणकार व क्षेप पुनरुक्त होनेसे यहाँ ग्रहण नहीं किये हैं। इसप्रकार सर्व गुणकार (१+३+२) ६ और क्षेप भी (१+३+२) ६ ही हैं। यहाँ पूर्वोक्त गुण्य ३६ को गुणकार ६ से गुणाकरके क्षेपराशि ६ जोड़नेसे (३६५६+६) सर्वभंग २२२ होते हैं। इनमें उपर्युक्त ८७५ भंग जोड़नेपर ( २२२ + ८७५) १०९७ भंग देशसंयतगुणस्थानसम्बन्धी
जानना ।
प्रमत्तगुणस्थानमें उपशमभावका उपशमसम्यक्त्वरूप एक, क्षायिकभावका क्षायिकसम्यक्त्वरूप एक, क्षायोपशमिक भावके १४-१३-१२ व ११ भावरूप ४, औदयिकभावके ६ भावरूप एक और पारिणामिकका भव्यत्वरूप एक ऐसे ८ स्थान हैं, उनके प्रत्येकभंगों में गुणकार एक, क्षेप ७; द्विसंयोगी भंगोंमें गुणकार ७, क्षेप १४; त्रिसंयोगी भङ्गों में गुणकार १४, क्षेप ८; चतुः संयोगी भंगों में गुणकार ८ ये सर्व मिलकर गुणकार तो (१+७+१४+८) ३० और क्षेप ( ७+१४+८) २९ हैं। यहाँ पूर्वोक्त गुण्यराशि .. ३६ में गुणकार ३० का गुणाकरले क्षेपराशि 38 मिलानेसे (३६×३०+२९) सर्व भंग ११०९ होते हैं। इसीप्रकार अप्रमत्तगुणस्थानमें भी स्थान ८, गुणकार ३० व क्षेप २९ तथा गुण्यराशि पूर्वोक्त ३६ में गुणकार ३० का गुणाकरके क्षेपराशि जोड़नेसे (३६ x ३० + २९ ) सर्वभंग ११०९ हैं।
उपशमश्रेणी में अपूर्वकरणसे उपशान्तकषायगुणस्थानपर्यन्त उपशमभावके सम्यक्त्व और चारित्ररूप एकस्थान, क्षायिकभावका सम्यक्त्वरूप एकस्थान, क्षायोपशमिकभावके १२-११-१० व ९ भावरूप चारस्थान, औदयिकभावके अपूर्वकरण व सवेद अनिवृत्तिकरणगुणस्थानमें ६ भावरूप और अवेदभागसे उपशान्तकषाय गुणस्थानपर्यन्त ५ भावरूप एकस्थान तथा पारिणामिकभावका भव्यत्वरूप एकस्थान इसप्रकार (१+१+४+१+१) ८-८ स्थान हैं। इनस्थानोंके प्रत्येकभंगमें गुणकार एक, क्षेप ७; द्विसंयोगीभंगोंमें गुणकार ७, क्षेप १५; त्रिसंयोगीभंगों में गुणकार १५, क्षेप १३; चतु:संयोगीभंगों में गुणकार १३, क्षेप ४ तथा पञ्चसंयोगी भंगोंमें गुणकार ४ हैं। ये सर्व मिलकर (१+७+१५+१३+४) ४० तो गुणकार एवं (७+१५+१३+४) ३९ क्षेप हैं । अपूर्वकरण में गुण्यराशि १२ है उसमें गुणकार ४० से गुणाकरके क्षेपराशि ३९ जोड़ने से (१२४४० + ३९) ५१९, सवेदअनिवृत्तिकरणगुणस्थानमें भी गुण्य १२ ही हैं अत: (१२×४०+३९) ५१९ ही भंग । वेदरहितअनिवृत्तिकरणमें गुण्य ४ हैं, इसमें गुणकारराशि ४० से गुणाकर क्षेपराशि ३९ जोड़नेसे (४०४० + ३९) १९९ भंग होते हैं। क्रोधरहित भागमें गुण्य तीन है अतः (३×४०+३९) १५९ भंग, मानरहित भाग में गुण्यराशि २ है अतः (२०४०+ ३९) ११९ भंग, मायारहित भागमें गुण्य एक ही है और आगे सूक्ष्मसाम्पराय व उपशान्तकषायगुणस्थानमें भी गुण्यराशि एक ही है अत: (१x४० + ३९) तीनों गुणस्थानोंमें ७९-७९ भंग होंगे।