Book Title: Gommatasara Karma kanda
Author(s): Nemichandra Siddhant Chakravarti, Jawaharlal Shastri
Publisher: Shivsagar Digambar Jain Granthamala Rajasthan

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Page 764
________________ गोम्मटसार कर्मकाण्ड-७२५ क्षपक श्रेणीके अपूर्वकरणगुणस्थानमें क्षायिकभावका सम्यक्त्व-चारित्ररूप एकस्थान, क्षयोपशमभावके १२-११-१० २९ भावरूप चारस्थान, औदयिकभावके ६ भावरूप एकस्थान, पारिणामिकभावके भव्यत्वभावरूप एकस्थान इसप्रकार ७ स्थान हैं, इनस्थानोंके प्रत्येकभंगोंमें गुणकार एक, क्षेप ६; द्विसंयोगीभगोंमें गुणकार ६, क्षेप ९; त्रिसंयोगीभंगोंमें गुणकार ९, क्षेप ४; चतुःसंयोगीभंगोंमें गुणकार ४ इसप्रकार सर्व मिलकर गुणकार (१+६+९+४) २० एवं क्षेप (६+९+४) १९ हैं। अत: पूर्वोक्त गुण्य १२ में गुणकार २० का गुणाकरके क्षेपराशि मिलानेसे सर्व (१२४२०+१९) २५९ होते हैं। अनिवृत्तिकरणगुणस्थान के सवेदभागमें अपूर्वकरणगुणस्थानवत, चारभावोंके ७ स्थान हैं, गणकार २०, क्षेप १९ और गुण्य पूर्वोक्त १२। यहाँ गुण्य १२ में गुणकार २० का गुणा करनेसे और क्षेपराशि १९ जोड़नेपर सर्वभंग (१२४२० +१९) २५९ होते हैं तथा वेदरहितभागमें भी पूर्ववत् चारभावके ७ स्थान हैं, किन्तु विशेष इतना है कि यहाँ औदयिकका ५ भावरूप स्थान है। यहाँ अपूर्वकरणगुणस्थानवत् गुणकार २०, क्षेप १९ हैं और पूर्वोक्त गुण्य ४ में गुणकार २० का गुणाकरके क्षेप मिलानेसे सर्वभंग (४४२०+१९) ९९ हैं। क्रोधरहितभागमें भी वेदरहित भागवत् ही सर्वकथन जानना । यहाँ भी गुणकार २०, क्षेप १९, पूर्वोक्त गुण्य ३ है। यहाँ गुण्यमें गुणकार २० से गुणाकरके क्षेपराशि १९ जोड़नेसे सर्वभङ्ग (३४२०+१९) ७९ हैं। मानरहित भागमें भी स्थान ७, गुणकार २० और क्षेपराशि १९ हैं। यहाँ गुण्यराशि पूर्वोक्त २ में गुणकार २० का गुणाकरके क्षेप ५९ जोड़नेसे सर्वभंगोंकी संख्या (२४२०+१९) ५९ हैं। मायारहितभागमें स्थान पूर्ववत् ७, गुणकार २० व क्षेप १९ । यहाँ गुण्यराशि पूर्वोक्त १ में गुणकार २० से गुणाकरके और १९ क्षेपराशि जोड़नेसे सर्वभंग (१४२०+१९) ३९ जानना। इसीप्रकार सूक्ष्मसाम्पराय व क्षीणकषाय गुणस्थानमें भी ३९-३९ ही भर जानना। सयोगकेवलीगुणस्थानमें क्षायिकभावका एक, औदयिकके ३ भावरूप एक, पारिणामिकभावका एक ऐसे तीनस्थान हैं। इनमें प्रत्येक भङ्गोंमें गुणकार एक, क्षेप २; द्विसंयोगीमें गुणकार २, क्षेप १; त्रिसंयोगीभंगोंमें गुणकार १ इसप्रकार गुणकार (१+२+१) ४, क्षेप (२+१)३ हैं, गुण्य १ है। यहाँ गुण्य १ में गुणकार ४ का गुणाकरके क्षेप ३ जोड़नेसे (१४४+३) सर्वभङ्ग ७ हैं। अयोगकेवलीगुणस्थानमें क्षायिकभावका एक, औदयिकके दो भावरूप एक, पारिणामिकका एक इसप्रकार ३ स्थान हैं। यहाँ सयोगकेवली गुणस्थानवत् गुणकार ४ व क्षेप ३ हैं और गुण्य १ में गुणकार ४ का गुणा करके क्षेपराशि ३ को जोड़नेसे (१४४+३) सर्वभंग ७ हैं। सिद्धोंमें क्षायिकभावका एक और पारिणामिकका जीवत्वरूप एक, इसप्रकार २ स्थान हैं। यहाँ प्रत्येकभंगमें क्षेप २. द्विसंयोगीमें क्षेप एक; इनको जोड़नेसे (२+१) ३ भंग होते हैं। इसप्रकार स्थानगत भंगोंका कथन किया। अथानन्तर पदगत भङ्गोंका कथन करते हैं दुविहा पुण पदभंगा, जादिगपदसव्वपदभवात्ति हवे। जातिपदखइगमिस्से, पिंडेव य होदि समजोगो।।८४४ ।।

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