Book Title: Gommatasara Karma kanda
Author(s): Nemichandra Siddhant Chakravarti, Jawaharlal Shastri
Publisher: Shivsagar Digambar Jain Granthamala Rajasthan

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Page 759
________________ गोम्मटसार कर्मकाण्ड-७२० " मिच्छादिठाणभंगा, अट्ठारसया हवंति तेसीदा । बारसयं पणवण्णा, सहस्ससहिदा हु पणसीदा ।।८४० ।। रूवहियडवीससया, सगणउदा दससया णवेणहिया । एक्कारसया दोण्हं, खवगेसु जहाकम बोच्छं।८४१॥ पुव्वे पंचणियट्टीसुहुमे खीणे दहाण छब्बीसा । तत्तियमेत्ता दसअडछच्चदुचदुचदुय एगूणं ।।८४२ ।। उवसामगेसु दुगुणं, रूवहियं होदि सत्त जोगिम्हि । सत्तेव अजोगिम्हि य, सिद्धे तिण्णेव भंगा हु ।।८४३ ।। कुलयं॥ अर्थ - औदयिकभावके स्थानमें अक्ष (भेदों) का संचार (परिवर्तन) होनेसे सर्वत्र जो भंग हों व गुणकार और औदायकभावक अतिरिक्त शर्षभावोंके स्थानमें अक्षसंचारसे जो भंग होते हैं उन्हें क्षेप जानना। औदयिक भावके गुण्यरूप प्रत्येकभंग मिथ्यात्वादि दो गुणस्थानोंमें २०४ हैं, मिश्र व असंयतगुणस्थानमें १८०-१८०, देशसंयतगुणस्थानमें ७२, प्रमत्तादि दोगुणस्थानों में ३६-३६, अपूर्वकरणमें १२, अनिवृत्तिकरणगुणस्थानोंके पाँच भागोंमें क्रमशः १२-४-३-२ व १ तथा इसके आगे अयोगीगुणस्थानपर्यन्त एक-एक हैं। चक्षुदर्शनरहित मिथ्यात्व से मिश्रगुणस्थानपर्यन्त १२-१२ व शून्य तथा आगे क्षायिकसम्यक्त्वसहित असयत व देशसंयतगुणस्थानमें १०४ ३ ३६ गुण्यरूप भंग हैं। उपर्युक्त गुण्यराशिमें (जिनसे गुणा जाय ऐसे) गुणकार क्रमसे मिथ्यात्वगुणस्थानमें ९, सासादन व मिश्रगुणस्थानमें ६-६, असंयत-देशसंयतगुणस्थानमें १२-१२, प्रमत्त व अप्रमत्तगुणस्थानमें ३०३०, अपूर्वकरणादि तीन और क्षीणकषायगुणस्थानमें २०-२० तथा सयोगी व अयोगी गुणस्थानमें चारचार हैं, किन्तु चक्षुदर्शनरहित और क्षायिकसम्यक्त्वकी अपेक्षा मिथ्यात्वसे देशसंयतगुणस्थानपर्यन्त क्रमसे गुणकार ३-२-शून्य-६ व ६ जानना तथा (गुण्यको गुणकारसे गुणा करनेपर जो प्रमाण हो उसमें जो राशि मिलाई जावे ऐसे) क्षेप पूर्वोक्त स्थानों में क्रमश: मिथ्यात्वगुणस्थानमें ८, साप्तादनादि दो गुणस्थानोंमें ५-५, असंयतादि दो गुणस्थानोंमें ११-११, प्रमत्तादि दो गुणस्थानोंमें २९-२९, अपूर्वकरणादि तीन गुणस्थानोंमें १९-१९ क्षेप हैं। आगे क्षीणकषायगुणस्थानमें भी ५९, सयोगी व अयोगी गुणस्थानमें ३-३ तथा चक्षुदर्शनरहित और क्षायिकसम्यक्त्वकी अपेक्षा (यथायोग्य) मिथ्यात्वादि पाँचगुणस्थानोंमें क्रमसे ३-२-शून्य-६ व ६ क्षेप हैं। (मिथ्यात्वमें ३, सासादनमें २, मिश्रमें शून्य, असंयतमें ६ व

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