Book Title: Gommatasara Karma kanda
Author(s): Nemichandra Siddhant Chakravarti, Jawaharlal Shastri
Publisher: Shivsagar Digambar Jain Granthamala Rajasthan
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गोम्मटसार कर्मकाण्ड-६७७
मिलानेपर १५ प्रत्ययरूप कूट होता है। इसप्रकार अनन्तानुबन्धीरहित प्रथमकूटमें १० आदि प्रत्ययरूप ६ स्थान हैं, दूसरेकूटमें भय-जुगुप्सामेंसे एकके मिलानेसे ११ आदि प्रत्ययरूप ६ स्थान हैं, तीसरेकूटमें भय व जुगुप्साके मिलानेसे १२ आदि प्रत्ययरूप ६ स्थान, अनन्तानुबन्धीसहित तीन कूटोंमें एक अनन्तानुबन्धीकषाय मिलनेसे प्रथमकूटमें ११ आदि प्रत्ययरूप ६ स्थान हैं, दूसरेकूटमें १२ आदि प्रत्ययरूप ६ स्थान हैं, तृतीयकूटमें १३ आदि प्रत्ययरूप ६ स्थान हैं इसमें अन्तिमस्थान १८ प्रत्ययरूप है यहाँ १० और १८ के स्थानमें एक-एक प्रकार ही है क्योंकि १० प्रत्ययका आस्रव तो अनन्तानुबन्धीरहित प्रथमकूटमें ही है और १८ प्रत्ययका आस्रव अनन्तानुबन्धीसहित अन्तिम कूटमें ही है, अन्यत्र नहीं। इसप्रकार कूटोंमें ११ और १० माल्ययरूप एशालमें अटले दीन-हीन प्रकार हैं, ५२ और १६ में पाँचपाँच प्रकार, १३-१४-१५ के छह-छह प्रकार हैं। इसीप्रकार सासादनादिगुणस्थानोंके जो कूट कहे हैं उनका विचार करके बन्धप्रत्ययोंके स्थान व उनस्थानोंके प्रकार जानना।
प्रत्ययस्थान व उनके प्रकारोंकी गुणस्थानापेक्षा कूट रचनासम्बन्धी सन्दृष्टिमिथ्यात्वगुणस्थान के अनन्तानुबन्धीकषायसहित तीन कूट
भय-जुगुप्सारहित प्रथमकूट
| भय अथवा जुगुप्सासहित | भय-जुगुप्सासहित ३रा कूट
२रा कूट
२ भय-जुगुप्सा १३ योग । १३ में से कोई एक
१३ में से कोई भी एक
| १३ में से कोई भी एक
हास्य-रति- 1 अरति-शोक
२-२
२-२
स्त्री-पुरुष-नपुंसकवेद ४ क्रोध-४ मान४ माया-४ लोभ
वेद ३ स्त्री-पुरुष-नपुंसकवेद १६ कषाय ४ क्रोध-४ मान
४ माया-४ लोभ पृथ्वीकायादि ६ १-२-३-४-५-६ इन्द्रिय व मन ६ | १-१-१-१-१-१ मिथ्यात्व ५ । १-१-१-१-१
स्त्री-पुरुष-नपुंसकवेद ४ क्रोध-४ मान४ माया-४ लोभ १-२-३-४-५-६
१-१-१-१-१-१
१-१-१-१-१-१
।
१-१-१-१-१
१-१-१-१-१
५५ बन्धप्रत्यय
१२-१३-१४-१५-१६-१७
५३-१४-१५-१६-१७-१८