Book Title: Gommatasara Karma kanda
Author(s): Nemichandra Siddhant Chakravarti, Jawaharlal Shastri
Publisher: Shivsagar Digambar Jain Granthamala Rajasthan
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गोम्मटसार कर्मकाण्ड-७१४
मिथ्यात्वादि दो गुणस्थानों में विभंगज्ञानरहित ९ का, चक्षुदर्शनसे रहित ८ का और उपर्युक्त १० का इसप्रकार ३ स्थान होते हैं, मिश्रादि तीनगुणस्थानोंमें एक तो अपना-अपना उत्कृष्ट स्थान तथा अवधिज्ञान व दर्शनरहित मिश्रमें ९ का, असंवत १७ का एवं देशसंयतमें ११ का इसप्रकार दो-दो स्थान हैं। प्रमत्तादि सात गुणस्थानोंमें एक-एक तो अपना उत्कृष्टस्थान है एवं एक-एक मन:पर्ययज्ञानरहित, एक-एक अवधिज्ञान व अवधिदर्शनरहित तथा एक-एक अवधि व मन:पर्ययज्ञान और अबधिदर्शनरहित (अर्थात् प्रमत्त-अप्रमत्तमें १३-१२ व ११ का और एक-एक अपना उत्कृष्ट ऐसे ४-४ स्थान, आपूर्वकरणादि पाँच गुणस्थानोंमें ११-१० व १ के तथा एक-एक अपना उत्कृष्ट ऐसे ४-४ स्थान जानना।)
औदयिकभावके २१ भेदोंमें से एक जीव और एक कालकी अपेक्षा मिथ्यात्वगुणस्थानमें ४ गति, ३ वेद, ४ कषाय व ६ लेश्यामेंसे एक-एक तथा मिथ्यात्व, असिद्धत्व, असंयम और अज्ञानरूप ८ भाव, सासादनादि तीनगुणस्थानोंमें मिथ्यात्वविना सात-सात भाव, देशसंयतसे अनिवृत्तिकरणके सवेदभागपर्यन्त मिथ्यात्व-असंयमबिना ६-६ भाव, अनिवृनिकरणगुणस्थानके अवेदभागमें और सूक्ष्मसाम्परायगुणस्थानमें मिथ्यात्व-असंयम व वेद बिना पाँच-पाँच भाव, उपशान्तकषाय व क्षीणकषायगुणस्थानमें मिथ्यात्व-असंयम-वेद और कषायबिना चार-चार भाव, सयोगीगुणस्थानमें मिथ्यात्व-असंयम-वेद-कषाय व अज्ञानबिना ३ भाव, अयोगीगुणस्थानमें मिथ्यात्व-असंयम-वेदकषाय-अज्ञान व लेश्याबिना मनुष्यगति-असिद्धत्वरूप दो भाव पाये जाते हैं।
गुणस्थानकी अपेक्षा १८ मिश्र (क्षायोपशमिक) भावोंमें स्थानगत भावसम्बन्धी सन्दृष्टिगुणस्थान | स्थानसंख्या | भावसंख्या । भावोंका विशेष स्पष्टीकरण मिथ्यात्व
३ अज्ञान, २ दर्शन और ५ दानादि लब्धियां । २ अज्ञान (कुमति-कुश्रुत) २ दर्शन, ५ लब्धि । २ अज्ञान (कुमति-कुश्रुत) १ अचक्षुदर्शन, ५ लब्धि। पूर्वोक्तानुसार। ३ मिश्रज्ञान, ३ दर्शन, ५ लब्धि ।
२ मिश्रज्ञान, २ दर्शन (चक्षु-अचक्षु), ५ लब्धि। असंयत
३ ज्ञान, ३ दर्शन, १ वेदकसम्यक्त्व, ५ लब्धि। २ ज्ञान (मति-श्रुत), २ दर्शन (चक्षु-अचक्षु), ५ लब्धि, १ वेदकसम्यक्त्व |
सासादन
मिश्र