Book Title: Gommatasara Karma kanda
Author(s): Nemichandra Siddhant Chakravarti, Jawaharlal Shastri
Publisher: Shivsagar Digambar Jain Granthamala Rajasthan
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गोम्मटसार कर्मकाण्ड - ६९५
दंसणणाणचरिताणि मोक्खमग्गो त्ति सेविदव्वाणि ।
साहिं इदं भणिदं तेहिं दु बन्ध मोक्खो वा ।। १६४ || पंचास्तिकाय
अर्थ - साधु पुरुषों ने कहा है कि दर्शन - ज्ञान - चारित्र मोक्षमार्ग है इसलिए वे सेवने योग्य हैं, किन्तु उनसे बन्ध भी होता है और मोक्ष भी होता है अर्थात् यद्यपि सम्यग्दर्शन - ज्ञान - चारित्र मोक्षमार्ग है ऐसा सभी आचार्योंने कहा है तथापि वे बन्धके हेतु (प्रत्यय) भी हैं और मोक्षके हेतु भी हैं।
यदि कोई ऐसी आशंका करे कि एक ही कारणसे दो विपरीतकार्य कैसे हो सकते हैं तो आचार्योंने दीपकका दृष्टान्त देते हुए कहा है कि इसमें सर्वथा कोई विरोध नहीं है। जैसे एक ही दीपक -ज्ञान- - चारित्रके प्रकाश का भी कारण है और धूमरूप अन्धकार का भी कारण है; उसीप्रकार सम्यग्दर्शनद्वारा कर्मनिर्जरा भी होती है और तीर्थङ्करप्रकृति व आहारकद्विकका बन्ध भी होता है, किन्तु यह पुण्यबन्ध मोक्षका ही कारण है, न कि संसारका 1 जैसे व्यापारी अपने व्यापारके विज्ञापन आदिमें व्यय करता है, किन्तु वह व्यय आय का ही कारण है, हानि का कारण नहीं है । समयसारके टीकाकार श्री अमृतचन्द्राचार्यने भी “तत्त्वार्थसार " ग्रन्थके चतुर्थअधिकारमें सम्यग्दर्शनको देवायुके बन्धका कारण कहा है
सरागसंयमश्चैव सम्यक्त्व देशसंयम data
इति देवायुषो होते भवन्त्यासव हेतवः ॥ ४३ ॥ तत्त्वार्थसार अ.४ ॥
अर्थात् सरागसंयम, सम्यक्त्व और देशसंयम ये देवायु के आस्रवमें कारण हैं।
यद्यपि षट्खण्डागमके 'वेदना' नामक चतुर्थखण्डमें "वेदणापच्चयविहाणाणि योगहार" नामक
आठवाँ अधिकार (ध. पु. १२ पृ. २७५) है, किन्तु उसमें उत्तर प्रकृतियोंके प्रत्ययोंका कथन नहीं है तथा मूलप्रकृतियों के सामान्य प्रत्ययों का कथन नयों की अपेक्षा से है अतः वेदनाखण्डके "वेदणापच्चयविहाणाणियोगहार" का यहाँ विचार नहीं किया गया।
事事事