Book Title: Gommatasara Karma kanda
Author(s): Nemichandra Siddhant Chakravarti, Jawaharlal Shastri
Publisher: Shivsagar Digambar Jain Granthamala Rajasthan
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__गोम्मटसार कर्मकाण्ड-६९६ ..
अथ भावचूलिकाधिकार अब भावचूलिकाधिकार को प्रारम्भ करते हुए सर्वप्रथम निर्विघ्नतया कार्यपरिसमाप्ति के लिए अपने इष्टदेव को नमस्कार करते हैं
गोम्मटजिणिंदचंद पणमिय गोम्मटप्रयत्थसंजुनं ! ..
गोम्मटसंगहविसयं भावगदं चूलियं वोच्छं ।।८११।। अर्थ – गोम्मटजिनेंद्र वे ही हुए चन्द्रमा सो उनको (गोम्मटजिनेंद्रको) नमस्कार करके समीचीन अर्थ और पदों से अथवा उत्तम पदार्थोके वर्णनसे सहित गोम्मटसारग्रन्थमें क्रमप्राप्त भावोंका कथन करनेवाले अधिकारको कहूंगा।
विशेष - उपर्युक्त मंगलाचरणगाथा में 'गोम्मटजिणिदचंद' पदमें संस्कृत टीकाकारने 'वर्धमान अथवा नेमिनाथस्वामी' ऐसा अर्थ प्रगट किया है किन्तु ऊपर गाथाके अर्थमें 'गोम्मटजिनेन्द्र' ऐसा ही रखा गया है, क्योंकि गोम्मटजिणिंदसे गोम्मटेश्वर (बाहुबली) ऐसा प्रगट अभिप्राय आचार्यका रहा हो।
जेहि दु लक्खिज्जते उवसमआदीसु जणिदभावेहिं ।
जीवा ते गुणसण्णा णिहिट्ठा सव्वदरसीहिं ।।८१२ ॥ अर्थ - अपने प्रतिपक्षीभूत कर्मोंके उपशमादि होनेपर उत्पन्न हुए जिन औपशमिकादिभावोंसे जीव पहिचाने जाते हैं वे भाव “गुण संज्ञाको प्राप्त होते हैं ऐसा सर्वदर्शियों (सर्वज्ञ) ने कहा है। आगे उन भावों के नाम व उनके भेदों का कथन करते हैं
उवसम खइओ मिस्सो ओदयिगो पारिणामिगो भावो।
भेदा दुग णव तत्तो दुगणिगिवीसं तियं कमसो।।८१३ ।। अर्थ - वह भाव औपशमिक, क्षायिक, मिश्र (क्षायोपशमिक), औदयिक और पारिणामिक के भेदसे ५ प्रकार का है तथा इन पाँचोंके भेद क्रमसे २-९-१८-२१ और ३ ।
विशेषार्थ - भगवान् कुन्दकुन्ददेवाचार्य ने भी पंचास्तिकायसंग्रह गाथा ५६ में इन पाँच भावों का कथन जीवगुणरूप से किया है
. पंचास्तिकाय गाथा ५६ । औपरिकमाथिको भावौ भिश्रश्च जीवस्व स्वतचमौदयिक पारिणामिकौ च" (त.सू.अ. २ भु. ५) "विनवाष्टादशैकविंशतित्रिभेटा यथाक्रमम्” (त.सू.अ. २१३))