Book Title: Gommatasara Karma kanda
Author(s): Nemichandra Siddhant Chakravarti, Jawaharlal Shastri
Publisher: Shivsagar Digambar Jain Granthamala Rajasthan
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गोम्मटसार कर्मकाण्ड-७०८ आगे उपशमश्रेणीके चारगुणस्थानोंमें भी मूलभाव पाँच-पाँच ही हैं। इनमें परसंयोगी भंगोंमें प्रत्येक भंग ५, द्विसंयोगी भंग १०, त्रिसंयोगीभंग १०, चतुःसंयोगीभंग ५ और पञ्चसंयोगी एक भंग है। यहाँ क्षायिकसम्यक्त्वके होनेपर उपशमचारित्र हो सकता है अत: उपशम और क्षायिकभावका भी संयोग जानना, किन्तु क्षायिकमें क्षायिकभावरूप स्वसंयोगी भंग नहीं है इसलिए यहाँ क्षायिकसम्यक्त्वमें अन्य कोई क्षायिकभावका चारित्रादि भेद नहीं होता, इसप्रकार शेष चारभंग जानना (५+१०+१०+५+१+१+१+१+१+०) ये सर्व ३५ भंग हुए तथा क्षपकश्रेणी के चारगुणस्थानों में क्षायिक-क्षायोपशमिक-औदयिक व पारिणामिकरूप चार-चार भाव हैं। यहाँ परसंयोगमें प्रत्येकभंग चार, द्विसंयोगीभंग छह, त्रिसंयोगीभंग चार और योगी अमर है क्या स्वागने ज्ञापिकसम्यक्त्वमें क्षायिकचारित्र भी सम्भव है अत: चारों भावोंकी अपेक्षा चार भंग हैं। इसप्रकार (४+६+४+१+४) सर्व १९ भंग जानना। सयोग व अयोगकेवलीगुणस्थानमें क्षायिक, पारिणामिक और औदयिक ये तीन भाव हैं। परसंयोगमें प्रत्येकभंग तीन, द्विसंयोगीभंग तीन और त्रिसंयोगीभंग एक तथा स्वसंयोगमें उपर्युक्त तीन भावोंकी अपेक्षा तीन भंग इसप्रकार (३+३+१+३) मिलकर दशभंग हुए। सिद्धोंके क्षायिक व पारिणामिक ये दो मूलभाव हैं। यहाँ प्रत्येकभंग २, द्विसंयोगीभग एक तथा स्वसंयोगी भंग दो, इसप्रकार सर्व पाँचभंग हुए। (जीवत्व-अस्तित्व, वस्तुत्व आदि पारिणामिक स्वसंयोगी भंग सिद्धोंमें भी सम्भव है।)