Book Title: Gommatasara Karma kanda
Author(s): Nemichandra Siddhant Chakravarti, Jawaharlal Shastri
Publisher: Shivsagar Digambar Jain Granthamala Rajasthan
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गोम्मटसार कर्मकाण्ड-६९१
है-धर्मोपदेशमें मिथ्या बातोंको मिलाकर उनका प्रचार करना, शीलरहित जीवन बिताना, अतिसंधानप्रियता तथा मरणके समय नील व कपोतलेश्या और आर्तध्यानका होना आदि तिर्यञ्चायुके बन्धके विशेष - प्रत्यक हैं।....
.... अथानन्तर मनुष्यायु के बन्ध के कारण कहते हैं
पयडीए तणुकसाओ दाणरदी सीलसंजमविहीणो।
मज्झिमगुणेहिं जुत्तो मणुवाउं बंधदे जीवो ॥८०६ ।। अर्थ – जो जीव स्वभावसे ही मन्दकपायी अर्थात् मृदुस्वभावी हो, पात्रदानमें प्रीतियुक्त हो, शील व संयमसे अर्थात् इन्द्रियसंयम व प्राणिसंवभसे रहित हो, मध्यमगुणों (परिणामों) से सहित हो ऐसा जीव मनुष्यायु को तीब्र अनुभागसहित बाँधता है।
विशेपार्थ - स्वभावका विनम्र होना, भद्रप्रकृतिका होना, सरलव्यवहार करना, अल्पकपायका होना तथा मरणके समय संक्लंशपरिणामी नहीं होना इत्यादि मनुध्यायुके तीव्रअनुभागबन्धकं विशेषप्रत्यय
आगे देवायु के बन्ध के कारण कहते हैं
अणुवदमहव्वदेहि य बालतवाकामणिज्जराए य!
देवाउगं णिबंधदि सम्मादिट्ठी य जो जीवो।।८०७३ अर्थ - जो जीव सम्यग्दृष्टि है वह केवल सम्यक्त्वसे एवं साक्षात् अणुव्रतमहावतोंसे देवायुको बांधता है तथा जो मिथ्यादृष्टि है वह अज्ञानरूप बालतपश्चरणसे एवं बिना इच्छाके बन्ध आदिसे हुई अकामनिर्जरासे देवायुका बन्ध करता है।
विशेषार्थ – अकामनिर्जरा, बालतप, मन्दकषायता, समीचीनधर्मका सुनना, दानदेना, देवगुरु व धर्म तथा इनके सेवक इन छह आयतनोंकी सेवा करना, सरागसंयम, सम्यक्त्व और देशसंयम ये सब देवायुके बन्धप्रत्यय हैं।"
५. सर्वार्थसिद्धि अ. ६ सूत्र १६ की टीका।
२. "अल्पारम्भपरिग्रहत्वं मानुषस्य' “स्वभावमार्दवं च' (त.सू.अ. ६ सूत्र १७-१८). प्रा.पं.सं.पृ. १७५ गाथा २१० एवं पृ. ५९५ गाथा २५ । ३. सर्वार्थसिद्धि अ. ६ सूत्र १७ की टीका!
४. ''सरागसंयमसंयमासंयमकामनिर्जरावाललपासिदैवल्य' "साम्यक्त्वं च" (त.सू.अ. ६ सूत्र २०-२१) प्रा.पं.सं.पृ. १७१ गाथा २५१ व पृ. ५९५ गाथा २६।
५. तत्त्वार्थसार अ. ४ श्लोक ४२-४३।