Book Title: Gommatasara Karma kanda
Author(s): Nemichandra Siddhant Chakravarti, Jawaharlal Shastri
Publisher: Shivsagar Digambar Jain Granthamala Rajasthan
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गोम्मटसार कर्मकाण्ड - ६७६
१० ही योग लिखना, इसप्रकार अनन्तानुबन्धीसहित और रहित ३-३ कूट मिलकर मिथ्यात्वगुणस्थानसम्बन्धी ६ कूट हुए। सासादनगुणस्थान में सामान्यरूप तीन कूटोंमें जहाँ पहले पाँच मिथ्यात्व लिखे थे उसके स्थानपर शून्य लिखनेपर तीन कूट होते हैं। मिश्रगुणस्थानमें अनन्तानुबन्धीकषाय नहीं है अतः चारकषायके स्थानपर ३-३ कषाय ही लिखना तथा औदारिकांमश्र, वैक्रियिकमिश्र और कार्मणकाययोगका अभाव होनेसे १३ योगोंके स्थानपर १० ही योग लिखना ऐसे मिश्रगुणस्थान में तीनकूट होते हैं। असंयतगुणस्थानमें पुनः औदारिकमिश्र - वैक्रियिकमिश्र और कार्मण इन तीन योगों के मिल जानेसे १३ योग लिखना, इसप्रकार यहाँ भी तीनकूट बनेंगे | देशसंयतगुणस्थानमें अप्रत्याख्यानकषायचतुष्कका अभाव होनेसे कषायके स्थानमें दो-दो कषाय चार स्थानोंपर लिखना और सहिंसा भी नहीं है अतः कायबधके स्थानपर ६ का अङ्क नहीं लिखना तथा औदारिकमिश्र, वैक्रियिकवैक्रियिकमिश्र एवं कार्मणकाययोगबिना १३ मेंसे ९ योग ही हैं अतः योगोंके स्थानपर ९ ही लिखना इसप्रकार इसगुणस्थानमें भी तीन कूट होते हैं। प्रमत्तगुणस्थान में १२ अविरति नहीं हैं अतः इन्द्रिय व कायवधके स्थान में सर्वत्र शून्य ही लिखना । प्रत्याख्यानकषायका भी अभाव है इसलिए कषायके स्थानमें एकका अङ्क लिखना और देशसंयतगुणस्थानसम्बन्धी ९ योगों में आहारक- आहारकमिश्रकाययोग मिलने पर ११ योग हो जानेसे योगस्थानमें ११ लिखना ऐसे यहाँ भी तीनकूट बनेंगे। अप्रमत्त व अपूर्वकरणगुणस्थानमें आहारक आहारकमिश्रकाय इन दो योगोंके बिना पूर्वोक्त ९ योग ही हैं अत: इन दोनों गुणस्थानों में योगस्थानमें ९ का अङ्क लिखकर तीन-तीन कूट बनेंगे। अनिवृत्तिकरणगुणस्थानके जिस-जिस भागमें वेद, कषाय और हास्यादि छह कषायका अभाव हुआ है उस उस भाग में शून्य लिखकर एक-एक ही कूट बनेगा, क्योंकि अनिवृत्तिकरणगुणस्थानके सभी भागों के कूटोंमें भय - - जुगुप्साका अभाव है। सूक्ष्मसाम्परायगुणस्थान में सर्वकषायोंके स्थानपर तीन शून्य और एक जगह एक लिखना इसप्रकार यहाँ एक कूट बनेगा । उपशान्त व क्षीणकषायगुणस्थान में सूक्ष्मलोभ भी नहीं अतः कषायों के स्थानमें शून्य लिखना, इसप्रकार एक कूट बनेगा तथा सयोगीगुणस्थानमें असत्य व उभयरूप मनवचनयोग नहीं है इसलिए योगस्थान में सातयोग लिखकर एककूट बनना चाहिए।
उपर्युक्त कूटोंमें अनन्तानुबन्धीरहित मिथ्यात्वगुणस्थानमें प्रथमकूट पाँच मिथ्यात्वोंमेंसे एक और इन्द्रिय व षटुकाय हिंसामेंसे एक इन्द्रिय व पृथ्वीकायकी हिंसा, अनन्तानुबन्धीबिना क्रोधादि चार कषायके त्रिकर्मे से एक त्रिक, वेदोंमें एक वेद, हास्य- रति व अरति शोकमेंसे एकयुगल, पर्याप्त होनेसे १० ही योगों में से एक योग इसप्रकार सर्व मिलकर १+१+१+३+ -२+१ = १० बन्धप्रत्ययरूप प्रथमकूट हैं तथा इनमें से पृथ्वीकायकी हिंसा घटाकर पृथ्वी आदि दोकायोंकी हिंसा मिलानेसे ११ प्रत्ययरूप कूट हैं। दो कायकी हिंसा स्थानमें तीन कायकी हिंसा मिलानेसे १२ प्रत्ययरूप कूट हैं, तीन काय की हिंसा के स्थानमें चारकायकी हिंसा मिलानेपर १३ प्रत्ययरूपकूट हैं। चारकायकी हिंसा के स्थानमें ५ कायकी हिंसा और मिलानेसे १४ प्रत्ययरूप कूट होता है तथा ५ कायकी हिंसाके स्थानपर ६ कायकी हिंसा