Book Title: Gommatasara Karma kanda
Author(s): Nemichandra Siddhant Chakravarti, Jawaharlal Shastri
Publisher: Shivsagar Digambar Jain Granthamala Rajasthan
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गोम्मटप्सार कर्मकाण्ड-६७१
चक्षु व अचक्षुदर्शनवाले जीवोंमें भी सभी (५७) प्रत्यय हैं, अवधिदर्शन व केवलदर्शनका कथन ज्ञानमार्गणामें क्रमसे अवधिज्ञान व केवलज्ञानके साथ कर चुके हैं। भन्यजीवोंमें सभी (५७) प्रत्यय, अभव्यजीवोंके आहारक-आहारकमिश्रबिना (५७-२) ५५ प्रत्यय हैं। आगे सम्यक्त्वमार्गणा में बन्धप्रत्यय कहते हैं
अणमिच्छाहारदुगुणा सव्वे उवसमे णेया।
आहारजुगल जुत्ता वेदय खइयम्मि ते होंति ॥१४॥ ....... ...मिशाहारनुमा पाए मिच्छम्मि आहारदुगूणा ।
अण-मिच्छ-मिस्स जोगाहारदुगूणा हवंति मिस्सम्मि ॥१५॥ अर्थ - औपशमिकसम्यग्दृष्टि जीवोंमें अमन्तानुबन्धीकषाय ४, मिथ्यात्व ५, आहारकआहारकमिश्रकाययोग इन (५+४+२) ११ के बिना शेष (५७-११) ४६ प्रत्यय हैं, वेदकसम्यग्दृष्टिके और क्षायिकसम्यग्दृष्टिके आहारकद्विक (आहारक-आहारकमिश्नकाय) योग होता है अतः इन दोनों में पूर्वोक्त ४६ में दो मिलानेसे (४६+२) ४८ प्रत्यय होते हैं। सासादनजीवों में मिथ्यात्व ५ और आहारकआहारकमिश्रयोगबिना (५७-५) ५० बन्धप्रत्यय होते हैं, मिथ्यादृष्टि जीवों में आहारक - आहारकमिश्रयोगबिना (५७-२) ५५ प्रत्यय; सम्यग्मिथ्यादृष्टि जीवोंमें अनन्तानुबन्धीकषाय ४, मिथ्यात्व ५, औदारिकमिश्र, वैक्रियिकमिश्र, कार्मण, आहारक-आहारकमिश्रकाययोग इन १४ बिना (५७-१४) ४३ प्रत्यय होते हैं। आगे सञ्जीमार्गणामें बन्धप्रत्ययोंका निरूपण करते हैं
मिच्छादिचउक्केयार जोगूणा असण्णिए मोत्तुं ।
भासंतोरालदुअं कम्मं सण्णिम्मेि सव्वे वि ।।१६।। अर्थ – असञीजीवोंमें चार मूलप्रत्ययके ५७ भेदोंमें से ११ योग (मनोयोग ४, ३ वचनयोग, वैक्रियिक-वैक्रियिकमिश्रकाययोग और आहारक-आहारकमिश्रकाययोग) तथा (उपलक्षणसे ग्रहणकर) मन अविरतिको कम करनेपर (५७-१२) ४५ बन्धप्रत्यय होते हैं। सञ्जीजीवोंके सभी (५७) प्रत्यय हैं। आगे आहारमार्गणा बन्धप्रत्यय कहते हैं--
आहारे कम्मूणा इयरे कम्मूण जोय रहिया ते । एवं तु मग्गणासुं उत्तरहेदू जिणेहिं णिहिट्ठा ॥१७॥