Book Title: Gommatasara Karma kanda
Author(s): Nemichandra Siddhant Chakravarti, Jawaharlal Shastri
Publisher: Shivsagar Digambar Jain Granthamala Rajasthan
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क्षपक अनिवृत्ति.
क्षपक सूक्ष्मसांप.
क्षीणकषाय
सयोगकेवली
अयोग केवली
गोम्प्टसर कर्मकाण्ड-१३
३० प्रकृतिरूप
३० प्रकृतिरूप
३० प्रकृतिरूप
२० प्रकृतिक
२१ प्रकृतिक
२६ प्रकृतिक
२७ प्रकृतिक
२८ प्रकृतिक
२९ प्रकृतिक
३० प्रकृतिक
३१ प्रकृतिक
९ प्रकृतिक
८ प्रकृतिक
२४
२४
२४
१
१
६
१
१२
१३
२५
१
१
१
६०
२
विशेष कथन के लिये गाथा ६०७
का विशेषार्थ देखना चाहिये ।
गाथा ६०७ के विशेषार्थसे विशेष कथन जानना ।
२०,०५३ इस प्रकार नामकर्म
उदयस्थान सम्बन्धी भङ्ग गुणस्थानोंमें २०,०५३ जानना ।
अब उपर्युक्त गाथा ६०७ में कथित भंगोंमें से अपुनरुक्त भंग कहते हैं
अडवण्णा सत्तसया सत्तसहस्सा य होंति पिंडेण । उदट्टाणे भंगा असहायपरक्कमुद्दिट्ठा ||६०८ ॥
अर्थ - सहायतारहित पराक्रमवाले श्री महावीरस्वामी (तीर्थङ्करदेव ) ने नामकर्मसम्बन्धी २० आदि प्रकृतिरूप पूर्वोक्त १२ उदयस्थानोंमें अपुनरुक्त भत्र ७७५८ कहे हैं।
विशेषार्थ - मिथ्यात्वगुणस्थानके ७६९२, प्रमत्तगुणस्थानवर्ती आहारकशरीरयुत मुनिके ४, सयोगकेवलीके ६० और अयोगकेवलीके २ भंग इसप्रकार ( ७६९२+४+६०+२) सर्व ७७५८ भंग अपुनरुक्त हैं, इनके अतिरिक्त शेष गुणस्थानसम्बन्धी जो भंग कहे गए हैं वे सभी मिथ्यात्वगुणस्थानके भंगों में गर्भित हैं ऐसा समझना चाहिए ।
इति नामकर्मउदयस्थान प्रकरण ।