Book Title: Gommatasara Karma kanda
Author(s): Nemichandra Siddhant Chakravarti, Jawaharlal Shastri
Publisher: Shivsagar Digambar Jain Granthamala Rajasthan
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गोम्मटसार कर्मकाण्ड-६१०
गतिमार्गणा में बन्ध-उदय व सत्त्वस्थानसम्बन्धी सन्दृष्टि-- गति बंधस्थान बन्धस्थानगत उदय- उदयस्थानगत सत्व- सत्त्वस्थानगत | 'संख्या । प्रकृति संख्या का स्थान प्रकृति संख्या का | स्थान | प्रकृति संख्याका
विवरण संख्या विवरण | संख्या विवरण
नरक | २ | २९ व ३० प्रकृति. | | २१-२५-२७-२८ । ३ , ९२-९१ व
. व २९
९० प्रकृतिक तिर्थञ्च ६ २३-२५-२६-२८- | ९ | २१-२४-२५-२६- - ५ | ९२-९०-८८-८४ व २९ व ३० प्रकृतिक २७-२८-२९-३० ८२
व ३१ मनुष्य | ८ |२३-२५-२६-२८- | ११ | २०-२१-२५-२६- १२ ] ९३-१२-११-९०. २९-३०-३१ व १ । २७-२८-२९-३०
८८-८४-८०-७९
३१-९व ८ प्रकृतिक ७८-७७-१० व ९ देव । ४ । २५-२६-२९-३० । ५ / २१-२५-२७-२८ व | ४ | ९३-१२-९१ व ९०
२९ प्रकृतिक
प्रकृतिक
आगे इन्द्रियमार्गणा में नामकर्म के बन्ध-उदय-सत्त्वस्थान कहते हैं
एगे वियले सयले पण पण अड पंच छक्केगार पणं।
पणतेरं बंधादी सेसादेसेवि इदि णेयं ॥७१४ ।। अर्थ – एकेन्द्रिय, विकलेन्द्रिय और पञ्चेन्द्रियमें क्रमसे ५-५ व ८ बन्धस्थान, ५-६ व ११ उदयस्थान एवं सत्त्वस्थान ५-५ व १३ हैं। इसीप्रकार अवशेष मार्गणाओंमें भी जानना चाहिए। इन्द्रियमार्गणासम्बन्धी उपर्युक्त कथन का दो गाथाओं में स्पष्टीकरण करते हैं
इगिविगल बंधठाणं अडवीसूणं तिवीसछक्कं तु । सयलं सयले उदया एगे इगिवीसपंचयं वियले ।।७१५ ॥ इगिछक्कडणवीसं तीसदु चउवीसहीणसबुदया।
णऊदिचऊबाणउदी एगे वियले य सव्वयं सयले ॥७१६ ॥जुम्मं ।। अर्थ – एकेन्द्रियमें २८ के बिना २३-२५-२६-२९ व ३० प्रकृतिरूप पाँच बन्धस्थान, २१ - २४-२५-२६ व २७ प्रकृतिरूप पाँच उदयस्थान एवं ९२-९०-८८-८४-८२ प्रकृतिरूप पाँच सत्त्वस्थान