Book Title: Gommatasara Karma kanda
Author(s): Nemichandra Siddhant Chakravarti, Jawaharlal Shastri
Publisher: Shivsagar Digambar Jain Granthamala Rajasthan
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गोम्मटसार कर्मकाण्ड-६५३
अथानन्तर नामकर्म के बन्ध-सत्त्वस्थान को आधार एवं उदयस्थान को आधेय मानकर ६ गाथाओं में कथन करते हैं
तेवीसबंधठाणे दुखणउदडचदुरसीदिसत्तपदे । इगिवीसादिणउदओ बासीदे एक्कवीसचऊ ||७६९ ।। एवं पणछवीसे अडवीसे बंधगे दुणउसे । इगिवीसादि णवुदया चउवीसट्टाणपरिहीणा ||७७० ॥ इणिउदीए तीसं उदओ णउदीए तिरियसण्णिं वा । अडसीदीए तीसद णववीसे बंधगे तिणउदीए ।। ७७१ ।। इगिवीसाददओ चउवीसूणो दुणउदिणउदितिये । इगिवीसणविगिणउदे णिरयं व छवीसतीसधिया ।। ७७२ ।। बासीदे इगिचउपणछव्वीसा तीसबंधतिगिणउदी । सुरमिव दुणउदिणउदी चउसुदओ ऊणतीसं वा ।। ७७३ ॥ इगतीसबंधठाणे तेणउदे तीसमेव उदयपदं । इगिबंध तिणउदिचऊ सीदिचउक्क्रेवि तीसुदओ ।।७७४ ||
अर्थ - २३ प्रकृतिक बन्धस्थानसहित ९२-९०-८८ व ८४ प्रकृतिक सत्त्वस्थानमें २१ प्रकृतिक स्थानको आदिकरके ९ उदयस्थान हैं, २३ प्रकृतिक ही बन्धसहित ८२ प्रकृतिक सत्त्वमें २१ आदि प्रकृतिक चार उदयस्थान हैं । । ७६९ ।।
२५-२६ प्रकृतिक बन्धसहित ९२ ९० ८८ व ८४ प्रकृतिक सत्त्वस्थानमें उदयस्थान पूर्वोक्त ही जानना । २८ प्रकृतिरूप बन्धसहित ९२ प्रकृतिका सत्त्व होनेपर २१ आदि प्रकृतिरूप ९ उदयस्थानों में २४ प्रकृतिक स्थान बिना शेष ८ स्थान हैं । २८ प्रकृतिक ही बन्धस्थान सहित ९१ प्रकृति के सत्त्वमें • प्रकृतिक उदयस्थान, ९० प्रकृतिक सत्त्वमें सीतिर्यञ्चमें कहे हुए २१-२६- २८-२९-३० व ३१ प्रकृतिक उदयस्थान, ८८ प्रकृति का सत्त्व होनेपर ३० व ३१ प्रकृतिक उदयस्थान हैं ।। ७७०-७१ ॥
३०
२९ प्रकृतिरूप बन्धके रहते हुए ९३ प्रकृतिक सत्त्वमें २१ आदि आठ उदयस्थानोंमें २४ प्रकृतिकस्थान बिना शेष २१ आदि प्रकृतिरूप ७ उदयस्थान हैं, (किन्तु ३१ का भी उदयस्थान नहीं है