Book Title: Gommatasara Karma kanda
Author(s): Nemichandra Siddhant Chakravarti, Jawaharlal Shastri
Publisher: Shivsagar Digambar Jain Granthamala Rajasthan
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गोम्मटसार कर्मकाण्ड-६६०
३० प्रकृतिक
३० प्रकृतिक ३०-३१ प्रकृतिक
| ९३-९२-९१ व ९० ० | 0 उपशान्तकषायगुणस्थान में
प्रकृतिक ८०-७९-७८ व ७७७.. . क्षीणशान्तकषायगुणस्थान में ८०-७१-७. ७५ ... गीमुष्ठास्थान में ....
प्रकृतिक । ८०-७९-७८-७७- ० ० अयोगीगुणस्थान में
१० व ९ प्रकृतिक
९-८ प्रकृतिक
६
णामस्स य बंधादिसु दुतिसंजोगा परूविदा एवं ।
सुदवणवसंतगुणगणसायरचंदेण सम्मदिणा ।।७८४ ।। । अर्थ - जो जैनसिद्धान्तरूपी वनको प्रफुल्लित करनेमें वसन्तऋतुके समान तथा गुणोंके समूहरूप सागरको वृद्धिंगत करनेके लिए चन्द्रमाके समान हैं ऐसे सम्यग्ज्ञानधारी श्री वर्धमानस्वामीने नामकर्मके बन्ध-उदय एवं सत्त्वमें द्विसंयोगी तथा त्रिसंयोगी भङ्ग (भेद) कहे हैं।
इसप्रकार श्री नेमिचन्द्रसिद्धान्तचक्रवर्ती विरचित गोम्मटसारकर्मकाण्ड की "सिद्धान्तज्ञानदीपिका” नामा हिन्दीटीका में 'स्थानसमुत्कीर्तन'
नामक चतुर्थ अधिकार पूर्ण हुआ।
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