Book Title: Gommatasara Karma kanda
Author(s): Nemichandra Siddhant Chakravarti, Jawaharlal Shastri
Publisher: Shivsagar Digambar Jain Granthamala Rajasthan
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गोम्मटसार कर्मकाण्ड-६६८ ओरालिय आहारदुगुणा हेऊ हवंति सुर-णिरए। आहारय-वेउव्वदुगूणा सव्वे वि तिरिएसु॥१॥ वेउव्वजुयलहीणा मणुए पणवण्ण पच्चया होति ।
गइचउरएसु एवं सेसासु वि ते मुणेदव्वा ॥२॥ अर्थ - नरकगतिमें औदारिकद्विक, आहारकद्विक, स्त्रीवेद और पुरुषवेद इन छहबिना शेष (५७-६) ५१ बन्ध प्रत्यय देवगतिमें उपर्युक्त छहों से स्त्री व पुरुषवेद को कम करके और नपुंसकवेद मिलानेपर इन पाँचबिना (५७-५) ५२ बन्धप्रत्यय; तिर्यञ्चगतिमें वैक्रियिकद्विक और आहारकदिकबिना शेष सभी (अर्थात् ५७-४) ५३ बन्धप्रत्यय तथा मनुष्यगतिमें वैक्रियिकद्विकबिना (५७-२) ५५ प्रत्यय होते हैं। इन्द्रियमार्गणा व कायमार्गणामें बन्धप्रत्यय कहते हैं
मिच्छत्ताइचउट्ठय बारह-जोगणिगिदिए मोत्तुं । ...... .... : सम्माराममुख व्यणंतजुआ दु ते वियले ॥३॥
तस पंचक्खे सव्वे थावरकाए इगिदिए जेम। अर्थ – इन्द्रियमार्गणाकी अपेक्षा मिथ्यात्वादि चार मूलप्रत्ययोंके ५७ भेदोंमेंसे औदारिकद्विक (औदारिक-औदारिकमिश्र) एवं कार्माणकाययोगबिना शेष १२ योगोंको और (उपलक्षणसे ग्रहण किये गए) रसना, घ्राण, चक्षु, श्रोत्र व मनसम्बन्धी अविरति तथा स्त्री-पुरुषवेद कमकरके (५७१९(१२+५+२)- ३८) बन्धप्रत्यय एकेन्द्रियोंमें होते हैं। द्वीन्द्रियोंमें रसनेन्द्रिय अविरति व अनुभयवचनयोगको इन ३८ प्रत्ययोंमें मिलानेपर ४० प्रत्यय होते हैं, त्रीन्द्रियजीवोंमें घ्राणेन्द्रियसम्बन्धी अविरतिको मिलानेसे ४१ प्रत्यय तथा चतुरिन्द्रियजीवोंमें चक्षुरिन्द्रियकी अविरति मिलानेपर ४२ प्रत्यय हैं, पञ्चेन्द्रिय और सजीवोंमें सर्व (५७) प्रत्यय एवं स्थावरकायिकजीवोंमें एकेन्द्रियवत् ३८ बन्धप्रत्यय
विशेषार्थ – शङ्का - एकेन्द्रियजीव त्रसहिंसा कैसे कर सकते हैं ?
समाधान -- मनुष्योंकी हिंसा करनेवाले वृक्ष तथा मच्छर आदिकी हिंसा करने वाले पुष्प पाए जाते हैं। अत: एकेन्द्रियजीवोंके द्वारा त्रसहिंसा संभव है।
योग-वेद और कषायमार्गणा में बन्धप्रत्ययों का कथन करते हैं