Book Title: Gommatasara Karma kanda
Author(s): Nemichandra Siddhant Chakravarti, Jawaharlal Shastri
Publisher: Shivsagar Digambar Jain Granthamala Rajasthan
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गोम्मटसार कर्मकाण्ड-६६७
अनिवृत्तिकरण | १५ २रा भाग
उपर्युक्त ४१+१ नपुंसकवेद ।
१
१वीवेद
उपर्युक्त ४२+१ स्त्रीवेद
अनिवृत्तिकरण ३रा भाग
१ पुरुषवेद
अनिवृत्तिकरण ४था भाग:
उपर्युक्त ४३+१ पुरुषवेद
संज्वलनक्रोध
उपर्युक्त ४४+१ संज्व.शोध ।
१
।
संज्वलनमान
अनिवृत्तिकरण ५वाँ भाग अनिवृतिकरण
६ठा भाग अनिवृत्तिकरण ७वाँ भाग
उपर्युक्त ४५+१ संज्व.मान
सज्वलनमाया
उपर्युक्त ४६+१ संज्व.माया
स्थूललोभ (किन्तु सूक्ष्मलोभ अभी शेष है)
सूक्ष्मलोभ की
सूक्ष्मसाम्पराय उपशांतकषाय
उपर्युक्त उपर्युक्त ४७+सूक्ष्मलोभ उपर्युक्त ४७+सूक्ष्भलोभ
क्षीणकयाय
२(असत्य व उभय
मनोयोग) + २(असत्य व उभय
वचनयोग)
सयोगकेवली । ७
। ५० ।
उपर्युक्त ४८+४ असत्य व | उभय मनोयोग व वचनयोग
७ |७ (सत्य व अनुभयरूप २
मनोयोग+सत्य व
अनुभयरूप २ वचनयोग औदारिक+ औदारिकमिश्र+कार्मण
काययोग)
५२, ५२-२ औदारिकमिश्र
व कार्मन
यहाँ प्रकरणप्राप्त चतुर्दशमार्गणाओं में बन्धप्रत्ययों के उत्तरभेदों का प्राकृतपंचसंग्रह के 'शतक' अधिकार से १७ गाथाएँ उद्धृत करके निरूपण करते हैं
सर्वप्रथम गतिमार्गणा में बन्धप्रत्यय का कथन करते हैं