Book Title: Gommatasara Karma kanda
Author(s): Nemichandra Siddhant Chakravarti, Jawaharlal Shastri
Publisher: Shivsagar Digambar Jain Granthamala Rajasthan
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गोम्मटसार कर्मकाण्ड-६६५
आदि १३ गुणस्थानों में अनुदयरूप उत्तर प्रत्यय क्रम से २-७-१४-११-२०-३३-३५-३५-४१-४७४८-४८-५० जानने चाहिए।'
मिच्छे पणमिच्छत्तं पढमकसायं तु सासणे मिस्से। सुण्णं अविरदसम्मे बिदियकसायं विगुव्वदुग कम्मं ॥३॥
ओरालमिस्स तसवह णवयं देसम्मि अविरदेक्कारा। तदियकसायं पण्णर पमत्तविरदम्मि हारदुगछेदो॥४॥
सुण्णं पमादरहिदेऽपुवे छण्णोकसायवोच्छेदो। अणियट्टिम्मि य कमसो एक्ककं वेदतियकसायतियं ॥५॥
सुहुमे सुहुमो लोहो सुण्णं उवसंतगेसु खीणेसु। अलीयुभयवयणमण चउ जोगिम्मि य सुणह वोच्छामि ॥६॥
सच्चाणुभयं वयणं मणं च ओरालकायजोगं च ।
ओरालमिस्स कम्मं उवयारेणेव सब्भावो ॥७॥
अर्थ- मिथ्यात्वगुणस्थानमें ५ मिथ्यात्वरूप प्रत्ययोंकी व्युच्छित्ति होती है, सासादनगुणस्थानमें अनन्तानुबन्धीकषायचतुष्करूप चार प्रत्ययोंकी, मिश्रगुणस्थानमें प्रत्ययव्युच्छित्तिका अभाव है, असंयतगुणस्थानमें अप्रत्याख्यानकषायचतुष्ककी तथा वैक्रियिक काय-वैक्रियिकमिश्रकाय, औदारिकमिश्नकाय व कार्मणकाययोग, त्रसहिंसा इन ९ प्रत्ययोंकी, देशसंयतगुणस्थानमें ११ अविरति व प्रत्याख्यानावरणकषाय चार इसप्रकार १५ प्रत्ययोंकी, प्रमत्तसंयतगुणस्थानमें आहारकद्विकरूप प्रत्ययकी, अप्रमत्तगुणस्थानमें शून्य, अपूर्वकरणमें हास्यादि ६ नोकषाय, अनिवृत्तिकरणगुणस्थानमें क्रमसे एकएक करके तीनवेद और तीन सज्वलनकषायोंकी (बादर लोभ), सूक्ष्मसाम्परायगुणस्थानमें सूक्ष्मलोभकी, उपशान्तकषायमें शून्य, क्षीणकषायगुणस्थानमें असत्य व उभयवचनयोग और दो मनोयोग ऐसे चार प्रत्ययोंकी तथा सयोगकेवलीके सत्य व अनुभय वचनयोग, सत्य व अनुभय मनोयोग, औदारिकऔदारिकमिश्रकाययोग, कार्मणकाययोग इन सात प्रत्ययोंकी व्युच्छित्ति होती है।