Book Title: Gommatasara Karma kanda
Author(s): Nemichandra Siddhant Chakravarti, Jawaharlal Shastri
Publisher: Shivsagar Digambar Jain Granthamala Rajasthan
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गोम्मटसार कर्मकाण्ड - ६५१
की उदीरणा व उदयकाल एकसमय कहा गया है- "वेउब्विय सरीरणामाए जहण्णेण एग समओ । कुदो ? तिरिक्ख - मणुस्सेसु एगसमयमुत्तरसरीरं विउव्विदूण विदियसमए मुदस्स तदुवलभादो" (ध. पु. १५ पृ. ६४) अर्थात् वैक्रियिकशरीर नामकर्मका उदीरणाकाल जघन्यसे एक समय है, क्योंकि तिर्यञ्च या मनुष्योंके एकसमय उत्तरशरीरकी विक्रियाकरके द्वितीयसमय में मृत्युको प्राप्त हुए जीवके एकसमय काल पाया जाता है। इसप्रकार वैक्रियिकशरीरवाले तिर्यञ्च या मनुष्यके वैक्रियिकशरीरकी अपेक्षा २५ व २७ प्रकृतिके उदयकाल में ९० प्रकृतिका सत्त्व और २८ प्रकृतिका बन्ध सम्भव है। प्राकृत पंचसंग्रहकार का भी यही मत है
पीसाई पंच
उखिए गया ।
संता पदमा चउरो उदया सत्तट्टवीस उणतीसा || ४३७ ॥
वैकिकाययोगियोंके २५ प्रकृतिक स्थानको आदि लेकर पाँच बन्धस्थान अर्थात् २५-२६२८-२९ व ३० प्रकृतिका बन्ध, २७-२८ व २९ प्रकृतिक ये तीन उदयस्थान तथा आदिके चार सत्त्व (९३-९२-९१ व ९० प्रकृतिक) स्थान होता है। वैक्रियिक काययोगमें २८ प्रकृतिक बन्धस्थान, वैक्रियिककाययोगवाले मनुष्य या तिर्यंचोंके ही सम्भव है । जिन मनुष्य व तिर्यञ्चोके वैक्रियिकशरीर होता है उन्हींके वैक्रियिककाययोग हो सकता है।
अधिकरणरूप बन्ध - उदय और आधेयरूप सत्त्वस्थानसम्बन्धी सन्दृष्टि
अधिकरण
आधेय
बन्धस्थान
२३ प्रकृतिक
२३ प्रकृतिक
२५-२६ प्रकृतिक
२५-२६ प्रकृतिक
उदय
स्थान
संख्या
४
५.
४
ܝ
उदयस्थानगल
प्रकृति संख्या
विवरण
२१-२४-२५ व २६ प्रकृतिक
२७-२८-२९-३०
व ३१ प्रकृतिक
२१-२४-२५ व २६ प्रकृतिक
(प्रा. पं.सं. पृ. ५०० )
२७-२८-२९-३० व ३१ प्रकृतिक
सत्त्व
स्थान
संख्या
४
५
४
सत्त्वस्थानगत
प्रकृतिसंख्या
विवरण
९९-९०-८८-८४
८२ प्रकृतिक
९२-९०-८८
व ८४ प्रकृतिक
९२-९०-८८-८४
व ८२ प्रकृतिक
९२-९०-८८ व ८४ प्रकृतिक