Book Title: Gommatasara Karma kanda
Author(s): Nemichandra Siddhant Chakravarti, Jawaharlal Shastri
Publisher: Shivsagar Digambar Jain Granthamala Rajasthan
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गोम्मटसार कर्मकाण्ड - ६५७
बन्ध, देव तथा प्रथम रकमें ३० का बन्ध है) ९२ प्रकृति का सत्त्व होनेपर आदिके छह बन्धस्थान, (आहारकसमुद्घात्तमें २७ प्रकृतिके उदयमें २८ प्रकृतिका बन्ध) १० आदि प्रकृतिरूप तीन स्थानों का सत्त्व होने पर आदिके छह बन्धस्थानोंमेंसे २८ प्रकृतिक स्थानबिना ५ बन्धस्थान हैं ।। ७७९ ।।
२८ प्रकृतिरूप स्थानका उदय रहते हुए ९३ व ९१ प्रकृतिका सत्त्व होनेपर २९-३० प्रकृतिके दो बन्धस्थान, ९२ प्रकृतिक और ९० आदि प्रकृतिरूप तीन ऐसे चार स्थानोंका सत्त्व होनेपर २७ प्रकृतिक उदयस्थानवत् ही यहाँ भी उदयस्थान जानना, किन्तु इतनी विशेषता है किं ९० प्रकृतिक सत्त्व में २८ प्रकृतिक बन्धस्थान है || ७८० ||
२९ प्रकृतिक उदय रहते हुए ९३-९९ व ९२-९० या ८८-८४ प्रकृतिक सत्त्व होनेपर बन्धस्थान २८ प्रकृतिक उदयस्थानवत् ही जानना तथा ३० प्रकृतिका उदय रहते हुए ९३ प्रकृतिक सत्त्वमें २९ व ३१ प्रकृतिक दो बन्धस्थान हैं, ९१ प्रकृति के सत्त्वमें नरक जानेके सम्मुख तीर्थङ्करप्रकृतिकी सत्तावाले मनुष्यके २८ व २९ प्रकृतिका बन्ध होता है ॥ ७८१ ।।
३० प्रकृतिक उदय रहते हुए ९३ ९४ व ८८ प्रकृतिक सत्त्वमें आदिके छह बन्धस्थान, ८४ प्रकृतिका सत्त्व होनेपर पूर्वोक्त छह बन्धस्थानोंमेंसे २८ प्रकृतिक बन्धस्थान बिना ५ बन्धस्थान हैं । ७८२ ॥
३१ प्रकृतिक उदयके रहते हुए अपने योग्य ९२-९०-८८ या ८४ प्रकृतिक सत्त्व होनेपर ३० प्रकृतिक उदयस्थानके समान आदिके छह बन्धस्थान तथा इन छहमें से २८ प्रकृतिक स्थारबिना ५ बन्धस्थान हैं। उपशान्तकषायादि चारगुणस्थानोंमें उदय व सत्त्वस्थान तो हैं, किन्तु बन्धस्थान नहीं है सो यहाँ उपशान्तकषायगुणस्थानमें उदय ३० प्रकृतिका एवं सत्त्व ९३ आदि प्रकृतिरूप चारस्थानोंका है, क्षीणकषायगुणस्थानमें उदय ३० प्रकृति का और सत्त्व ८० आदि प्रकृतिरूप चारस्थानों का है, सयोगीगुणस्थान में उदय ३० प्रकृतिक एवं सत्त्व ८० आदि प्रकृतिरूप चारस्थानका, अयोगी गुणस्थान में उदय ९ या ८ प्रकृतिका और सत्त्व ८० आदि प्रकृतिरूप चारस्थानोंका अथवा १० व ९ प्रकृतिका है ।