Book Title: Gommatasara Karma kanda
Author(s): Nemichandra Siddhant Chakravarti, Jawaharlal Shastri
Publisher: Shivsagar Digambar Jain Granthamala Rajasthan
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गोम्मटसार कर्मकाण्ड-६५६
छव्वीसे तिगिणउदे उणतीसं बंध दुगखणउदीए। आदिमछक्कं एवं अडसीदितिए ण अडवीसं॥७७८ ।। सगवीसे तिगिणउदे णववीसदु बंधयं दुणउदीए । आदिमछण्णउदितिए एयं अड़वीसयं णत्थि ।।७७९ ।। अडवीसे तिगिणउदे उणतीसदु दुजुदणउदिणउदितिए। बंधो सगवीसं वा णउदीए अस्थि अडवीसं ॥७८०॥ अडवीसमिणतीसे तीसे तेणउदिसत्तगे बंधो। णववीसेक्कत्तीसं इगिणउदी अट्ठवीसदुगं ।।७८१ ।। तेण दुणउदे णउदे अडसीदे बंधमादिमं छक्कं । । चुलसीदेवि य एवं वरि ण अडवीसबंधपदं ।।७८२ ।। तीसुदयं विगितीसे सजोग्गबाणउदिणउदितियसत्ते ।
उवसंतचउक्कुदये सत्ते बंधस्स ण वियारो ॥७८३ ।।
अर्थ -- २१ प्रकृतिक उदयस्थानके रहते हुए ९३-९१ प्रकृतिका सत्व होनेपर २९ व ३० प्रकृतिरूप दो बन्धस्थान, ९२ व ९० प्रकृतिक सत्व होनेपर आदि के ६ बन्धस्थान हैं, ८८ आदि प्रकृतिरूप तीन स्थानोंका सत्त्व होनेपर आदिके ६ बन्धस्थानोंमें से २८ प्रकृतिक स्थानबिना शेष ५ स्थान हैं तथा २४ प्रकृतिक उदयके रहते हुए ९२ व ९० एवं ८८, ८४ व ८२ प्रकृतिरूप तीन ऐसे ५ सत्त्वस्थानोंमें भी उपर्युक्त ५ बन्धस्थान हैं॥७७५-७६ ।।
२५ प्रकृतिक उदयसहित ९३ व ९१ प्रकृतिका सत्त्व होनेपर २९ व ३० प्रकृतिक दो बन्धस्थान, ९२ प्रकृतिका सत्त्व होनेपर आदिके ६ बन्धस्थान, ९० आदि (९०-८८-८४-८२) प्रकृतिरूप चारस्थानों का सत्त्व होनेपर पूर्वोक्त आदिके ६ बन्धस्थानों में से २८ प्रकृतिक स्थानबिना शेष ५ बन्धस्थान हैं। ७७७॥
(मनुष्यगतियुत) २६ प्रकृतिक स्थानका उदय रहते हुए ९३ व ९१ प्रकृतिका सत्त्व होनेपर (देवगति व तीर्थङ्करयुत) २९ प्रकृतिरूप बन्धस्थान, ९२ व ९० प्रकृतिका सत्त्व होनेपर २३ आदि प्रकृतिक छह बन्धस्थान, ८८ आदि प्रकृतिरूप तीन स्थानों का सत्त्व होनेपर आदिके छह बन्धस्थानोंमेंसे २८ प्रकृतिक स्थानबिना शेष पाँच बन्धस्थान हैं।७७८ ।।
२७ प्रकृतिक स्थानका उदय रहते हुए ९३ व ९१ प्रकृतिका सत्त्व होनेपर २९ आदि (२९ व ३०) प्रकृतिरूप दो बन्धस्थान, (मनुष्योंके आहारकसमुवातमें २७ प्रकृतिके उदयमें २९ प्रकृतिका