Book Title: Gommatasara Karma kanda
Author(s): Nemichandra Siddhant Chakravarti, Jawaharlal Shastri
Publisher: Shivsagar Digambar Jain Granthamala Rajasthan
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गोम्मटसार कर्मकाण्ड-६२३
आगे आहारमार्गणा में बन्ध, उदय और सत्त्वस्थानों का कथन करते हैंआहारे बंधुदया संढं वा णवरि णत्थि इगिवीसं । पुरिसं वा कम्मंसा इदरे कम्मं व बंधतियं ॥ ७३७ ॥
आहार
मार्गणा
अर्थ - आहारमार्गणामें बन्ध और उदय तो नपुंसकवेदके समान हैं, किन्तु विशेष यह है कि २१ प्रकृतिक उदयस्थान यहाँ नहीं है, सत्त्वस्थान पुरुषवेदवत् हैं। अनाहारमार्गणा बन्ध - उदय और सत्त्वस्थान कार्मणकाययोगवत् है, किन्तु विशेषता यह है कि अयोगकेवली के ९ व ८ प्रकृतिरूप दो उदयस्थान तथा १० व ९ प्रकृतिक दो सत्त्वस्थान हैं। इसप्रकार १४ मार्गणाओंमें बन्ध-उदय एवं सबके त्रिसंयोगका सार स्पष्टरूपसे कहा ।
आहारमार्गणा में बन्ध-उदय सत्त्वस्थानसम्बन्धी सन्दृष्टि
आहारक ८
अनाहारक
अत्थि णवट्ट य दुदओ दसणवसत्तं च विज्जदे एत्थ । इदि बंधुदयपदीसुदणामे सारमादेसे ||७३८ || जुम्मं ॥
बन्ध
स्थान
सख्या
६
बन्धस्थानगत
प्रकृति - संख्या
का विवरण
२३-२५-२६२८-२९-३०-३१ व १ प्रकृतिक
२३-२५-२६२८-२९ व ३० प्रकृतिक
उदय
स्थान
संख्या
८
૪
उदयस्थानगत सत्त्व
प्रकृति संख्या का स्थान
विवरण संख्या
२४-२५-२६२७-२८-२९-३०
व ३१
२०-२१-९ व ८ प्रकृतिक
यहाँ ९८
प्रकृतिक स्थान
अयोगकेवली की
अपेक्षा से हैं।
सत्त्वस्थानगत प्रकृतिसंख्या का विवरण
११. ९३-९२-११-१०
८८-८४-८२-८०
७९ ७८व ७७ प्रकृतिक
१३ ९३-९९-११-१०
८८-८४-८२-८०७९-७८-७७
१० व ९
यहाँ १० व १ प्रकृतिक-स्थान
अयोगकेवली की अपेक्षा से है।