Book Title: Gommatasara Karma kanda
Author(s): Nemichandra Siddhant Chakravarti, Jawaharlal Shastri
Publisher: Shivsagar Digambar Jain Granthamala Rajasthan
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गोम्मटसार कर्मकाण्ड-१४ ...."
प्रमत्तगुणस्थान में बन्ध देवगति व तीर्थङ्करयुत २९ प्रकृतिका और उदय २५-२७-२८-२९ व ३० प्रकृतिका, अप्रमत्तगुणस्थानमें बन्ध देवगति व तीर्थङ्करयुत २९ का एवं देवगति आहारक व तीर्थङ्करयुत ३१ का, उदय ३० प्रकृतिक का है, उपशमक अपूर्वकरणमें अप्रमत्तवत् बन्ध-उदय जानना। अनिवृत्तिकरण-सूक्ष्मसाम्परायगुणस्थानमें बन्ध एकप्रकृतिका, उदय ३० प्रकृतिका है, उपशान्तमें बन्धका अभाव और उदय ३० प्रकृतिका है, क्षीणकषायादि गुणस्थानोंमें ९३ प्रकृत्तिका सत्त्व नहीं है क्योंकि इनमें १३ प्रकृतियोंका क्षय हो जानेसे ८० प्रकृतियोंका सत्त्व रहता है। वैमानिकदेवोंके असंयतगुणस्थानमें ९३ प्रकृतिक सत्त्वमें मनुष्यतीर्थङ्करयुत ३० प्रकृतिक बन्धसहित उदय २१-२५-२७-२८ व २९ प्रकृतिका होता है। यहाँ २८ प्रकृतिक बन्ध नहीं होता, क्योंकि नरक जानेके सम्मुखजीवको छोड़कर तीर्थकरकी सत्ता वाले अन्य जीव सदा तीर्थकर प्रकृतिका बन्ध करते हैं और तीर्थङ्करप्रकृतिके साथ २९ प्रकृतिक बन्ध ही सम्भव है।
९२ प्रकृतिक सत्त्व चारोंगतिमें पाया जाता है। नरकगतिमें १२ प्रकृतिक सत्त्वमें घर्मानरकके मिथ्यादृष्टिको तिर्यञ्च या मनुष्ययुत २१ और तिर्यञ्च -उद्योतयुत ३० प्रकृतिक बन्ध तथा २१-२५-२७२८ व २९ प्रकृतिका उदय होता है। सासादनगुणस्थानमें ९२ प्रकृतिका सत्त्वस्थान नहीं है, मिश्रगुणस्थानमें ९२ प्रकृतिका सत्व रहते हुए मनुष्यगतिसंयुक्त २९ प्रकृतिका बन्ध और २९ प्रकृतिका ही उदय भी पाया जाता है। असंयतगुणस्थानमें मनुष्यगतिसहित २९ प्रकृतिका बन्ध एवं २१-२५-२७-२८ व २९ प्रकृतिका उदय है। वंशासे मघवीपृथ्वीपर्यन्त मिथ्यात्वगुणस्थानमें ९२ प्रकृतिका सत्त्व रहते हुए बध-उदयका कथन घर्मानरकवत् ही जानना । यहाँ सासादनगुणस्थानमें ९२ प्रकृतिक सत्व ही नहीं होता, मिश्रगुणस्थानमें बन्ध व उदय २९-२९ प्रकृतिरूप ही है। असंयतगुणस्थानमें मनुष्यगतियुत २९ का बन्ध और २९ प्रकृतिका ही उदय पाया जाता है। माघवीपृथ्वीसम्बन्धी मिथ्यात्वगुणस्थानमें ९२ प्रकृतिका सत्त्व रहते हुए तिर्यञ्चयुत २९ प्रकृतिक एवं तिर्यञ्च-उद्योतयुत ३० प्रकृतिक बन्धसहित उदय धर्मानरकवत् ही जानना । यहाँ सासादनगुणस्थानमें ९२ प्रकृतिक सत्त्वस्थान नहीं हैं, मिश्र व असंयतगुणस्थानमें बन्ध मनुष्यगतियुत २९ प्रकृतिक तथा उदय भी २९ प्रकृति का ही है। तिर्यञ्चोंमें ९२ प्रकृतिक सत्त्व रहते हुए मिथ्यात्वगुणस्थानमें २३-२५-२६-२८-२९ व ३० प्रकृतिक बन्धमें २१-२४-२५-२६-२७-२८२९-३० व ३१ प्रकृतिका उदय है, सासादनमें ९२ प्रकृतिक सत्त्वस्थान नहीं है, मिश्रगुणस्थानमें बन्ध देवगतियुत २८ प्रकृतिका और उदय ३०-३१ प्रकृतिका है, असंयतगुणस्थानमें बन्ध देवगतिसंयुक्त २८ प्रकृतिका तथा उदय २१-२६-२८-२९-३० व ३१ प्रकृतिका है किन्तु २५-२६-२८ व २९ प्रकृतिका उदय भोगभूमिजकी अपेक्षा है। देशसंयतगुणस्थानमें बन्ध देवगतियुत २८ प्रकृतिका और उदय ३० व ३१ प्रकृतिका पाया जाता है। मनुष्यके ९२ प्रकृतिका सत्त्व रहते हुए मिथ्यात्वगुणस्थानमें २३-२५-२६२८-२९ व ३० प्रकृतिक बन्धसहित २१-२६-२८-२९ व ३० प्रकृतिका उदय होता है, सासादनगुणस्थानमें ९२ प्रकृतिका सत्त्व नहीं है, मिश्रगुणस्थानमें देवगतिसंयुक्त २८ प्रकृतिक बन्ध और उदय ३० प्रकृति का