Book Title: Gommatasara Karma kanda
Author(s): Nemichandra Siddhant Chakravarti, Jawaharlal Shastri
Publisher: Shivsagar Digambar Jain Granthamala Rajasthan
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गोम्मटसार कर्मकाण्ड-६४६ और उदयभी २९ प्रकृतिका ही है, असंयतगुणस्थानमें भवनत्रिकसे अनुत्तरविमानपर्यन्त बन्ध मनुष्यगतियुत २९ प्रकृतिका है, एवं उदय भवननिको २९ प्रकृतिका और सौधर्मद्विकसे अनुत्तरविमानपर्यन्त २१-२५२७-२८ व २९ प्रकृतिका रहता है।
८८ प्रकृतिक सत्त्वस्थान देवद्विककी उद्वेलना होनेपर एकेन्द्रिय व विकलत्रयके होता है। ये जीव मरणकर मिथ्यादृष्टितिर्यञ्च व मनुष्योंमें उत्पन्न होते हैं। उनके २३-२५-२६-२८-२९ व ३० प्रकृतिक बन्धसहित तिर्यञ्चके २१-२४-२५-२६-२७-२८-२९-३० व ३१ प्रकृति तथा मनुष्यके २१-२६२८-२९ व ३० प्रकृतिका उदय पाया जाता है। आगे सासादनादि गुणस्थानोंमें ८८ प्रकृतिक सत्त्वस्थान नहीं है। मिथ्यादृष्टि पञ्चेन्द्रियतिर्यञ्च व मनुष्यके शरीर पर्याप्तिकालमें जबतक देवगतिका बन्ध नहीं होता तबतक ८८ प्रकृतिक सत्त्वस्थान पाया जाता है अथवा एकेन्द्रिय व विकलत्रय नारकचतुष्ककी उद्वेलना करके मरणकर पञ्चेन्द्रियत्तिर्यञ्च अथवा मनुष्य में उत्पन्न होता है। वहाँ शरीरपर्याप्तिकालमें देवगतिको बाँधनेवाला जबतक नरकगतिको नहीं बाँधता तबतक उसके ८८ प्रकृतिका सत्त्व हो सकता है। ८४ प्रकृतिका सत्त्व नारकचतुष्ककी उद्वेलना होनेपर एकेन्द्रिय या विकलेन्द्रियके होता है ये मरणकरके मिथ्यादृष्टितिर्यञ्च अथवा मनुष्योंमें उत्पन्न होते हैं सो इनके भी जबतक देव या नरकगतिका बन्ध नहीं होता तबतक ८४ प्रकृतिका सत्त्व होता है। यहाँ पर बन्ध व उदयसम्बन्धी कथन ८८ प्रकृतिक स्थानके समान जानना, विशेष इतना है कि २८ प्रकृतिक बन्धका यहाँ अभाव है। ८२ प्रकृतिक सत्त्वस्थान मनुष्यद्विककी उद्वेलना होनेपर तेजकाय-वायुकायके जीवों में होता है, ये मरणकरके मिथ्यादृष्टितिर्यञ्चोंमें उत्पन्न होते हैं सो इनके बन्ध २३-२५-२६-२९ व ३० प्रकृतिक तथा उदय २१-२४-२५ व २६ प्रकृतिका है। यहाँ तेजकायवायुकायके जीवोंमें आतप या उद्योतका उदय नहीं है। जबतक मनुष्यगतिका बन्ध नहीं होता तबतक ८२ प्रकृतिक सत्त्वस्थान होता है। ८० प्रकृतिक सत्त्व क्षपकश्रेणिमें अनिवृत्तिकरणसे तीर्थङ्करकेवलीसम्बन्धी अयोगीगुणस्थानके द्विचरमसमयपर्यन्त होता है। ८० प्रकृतिका सत्त्व रहते हुए अनिवृत्तिकरण व सूक्ष्मसाम्परायगुणस्थानमें एक प्रकृतिके बन्धसहित उदय ३० प्रकृतिका है। आगे गुणस्थानोंमें बन्धका अभाव है अत: उदय क्षीणकषाचगुणस्थानमें ३० प्रकृतिका, सयोगकेवली गुणस्थानमें स्वस्थानकेवलीके ३१ प्रकृतिका, समुद्घातकेवलीके २१-२७-२९-३० व ३१ प्रकृतिका एवं अयोगकेवलीके ९ प्रकृतिका पाया जाता है। ७९ प्रकृतिका सत्त्व तीर्थङ्करप्रकृतिरहित है, ७८ प्रकृतिका सत्त्व तीर्थक्करप्रकृतिसहित एवं आहारकद्रिकप्रकृतिरहित है। ७७ प्रकृतिका सत्त्व तीर्थंकर और आहारकद्विक रहित है सो इनतीनों स्थानोंमें बन्धउदय का कथन क्षपकअनिवृत्तिकरणसे क्षीणकषायगुणस्थानपर्यस्त ८० प्रकृतिक सत्त्वस्थानवत् है। सयोगकेवलींगुणस्थानमें ७९ व ७७ प्रकृतिके सत्त्वमें स्वस्थानकेवलीके ३० प्रकृतिका, समुद्घातकेवलीके २०-२६-२८-२९ व ३० प्रकृतिका उदय है, ७८ प्रकृतिक सत्त्वमें उदय ८० प्रकृतिक स्थानबत् जानना, अयोगीके ७९-७७ के सत्त्वमें बन्धका अभाव तथा उदय ८ प्रकृतिक है और ७८ के सत्त्व में ९ का उदय है, ५० व ९ प्रकृतिक सत्त्व अयोगकेवलीगुणस्थानके चरमसमयमें