Book Title: Gommatasara Karma kanda
Author(s): Nemichandra Siddhant Chakravarti, Jawaharlal Shastri
Publisher: Shivsagar Digambar Jain Granthamala Rajasthan
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गोम्मटसार कर्मकाण्ड - ६३०
है वहाँ तो मनुष्यगतिसंयुक्त २९ प्रकृतिका ही पाया जाता है तथा धर्म महारस्वर्गपर्यन्त देवोंके असंयत गुणस्थान में मनुष्य व तीर्थङ्करसहित ३० प्रकृतिका बन्ध है तब उदय २१-२५-२७-२८ व २९ प्रकृतिका एवं सत्त्व ९३ व ९१ प्रकृतिका है, आगे आनतस्वर्गसे उपरिम ग्रैवेयकपर्यन्त मिध्यात्वसासादन और मिश्र इन तीन गुणस्थानों में ३० प्रकृतिका बन्ध नहीं है। आनतस्वर्ग से सर्वार्थसिद्धिपर्यन्त असंयतगुणस्थानवर्ती देवोंके ३० प्रकृतिकबन्धमें उदय २१ - २५-२७-२८ व २९ प्रकृतिका और सत्त्व ९३ व ९१ प्रकृतिका पाया जाता है।
देवगति-आहारकद्विक व तीर्थकरसहित ३१ प्रकृतिक बन्ध अप्रमत्त व अपूर्वकरणगुणस्थानवर्ती ही करते हैं सो इनके इस बन्धस्थानमें उदय और सत्त्व क्रमश: ३० व ९३ प्रकृतिका पाया जाता है । अपूर्वकरणके सप्तमभाग तथा अनिवृत्तिकरणगुणस्थानमें यशस्कीर्तिरूप १ प्रकृतिक बन्धमें उदय ३० प्रकृतिका और सत्त्व ९३ - ९२-९१-९०-८०-७१-७८ व ७७ प्रकृतिका है, किन्तु अपूर्वकरणके सप्तमभागमें ८० आदि प्रकृतियोंके सत्त्वस्थान नहीं हैं। सूक्ष्मसाम्परायगुणस्थानमें यशस्कीर्तिरूप १ प्रकृतिक बन्धमें उदय ३० प्रकृतिका एवं सत्त्व ९३ ९२-९१ - ९० ८० ७९ - ७८ व ७७ प्रकृतिका है, उपशान्तकषायगुणस्थानमें बन्धका अभाव रहते हुए भी उदय ३० प्रकृतिक एवं सत्त्व ९३-१९२-९१ व ९० प्रकृतिका है, क्षीणकषायगुणस्थानमें उदय ३० प्रकृतिका एवं सत्त्व ८०-७९ ७८ व ७७ प्रकृतिका है। सयोगकेवलीके स्वस्थानमें ३० व ३१ प्रकृतिका उदय और सत्त्व ८०-७९-७८ व ७७ प्रकृतिका है तथा समुद्घातकेवलीके २०-२१-२६-२७-२८ २९ ३० व ३१ प्रकृतिका उदय एवं सत्त्व ८०-७९७८ व ७७ प्रकृतिका है। अयोगीगुणस्थानमें उदय ९ व ८ प्रकृतिका और सत्त्व ८०-७९-७८-७७१० व ९ प्रकृति का है।
१. गोम्मटसार कर्मकाण्ड गाथा २७१ व २७६ देखो ।