Book Title: Gommatasara Karma kanda
Author(s): Nemichandra Siddhant Chakravarti, Jawaharlal Shastri
Publisher: Shivsagar Digambar Jain Granthamala Rajasthan
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गोम्मटसार कर्मकाण्ड-६२८
२९ प्रकृतिका बन्ध द्वीन्द्रियादिसहित या वसपर्याप्तसहित अथवा तिर्यञ्च या मनुष्यगतिसहित अथवा देवगति तीर्थङ्करसहित होता है और इस स्थानको चारोंगतिके जीव बाँधते हैं। यहाँ नारकियोंके मिथ्यात्वगुणस्थानमें पञ्चेन्द्रिय तिर्यञ्च व मनुष्यसहित २९ प्रकृतिका बन्ध होता है तब उदय २१-२५२७-२८ व २९ प्रकृतिका, सत्त्व ९२-९१ व ९० प्रकृतिका है; ९१ प्रकृतिका सत्त्व घर्मादि तीन नरकोंमें प्रथमतीन अन्तर्मुहूर्तपर्यन्त ही सम्भव है। सासादनगुणस्थानमें पूर्वोक्तप्रकार २९ प्रकृतिक बन्धमें उदय २९ एवं सत्त्व ९० प्रकृतिका है, मिश्रगुणस्थानमें मनुष्यसहित ही २९ प्रकृतिक बन्ध है तब उदय भी २९ प्रकृतिक एवं सत्त्व ९२ व ९० प्रकृतिका है, असंयतगुणस्थानमें भी मनुष्ययुत ही २९ प्रकृतिरूप बन्ध होता है तब धर्मानरकसम्बन्धी २९ प्रकृतिक बन्धके साथ २१-२५-२७-२८ व २९ प्रकृतिरूप उदय
और ९२ व ९० प्रकृतिक सत्त्व है; वंशा-मेघादि पृथ्वियोंमें २९ प्रकृतिक बन्धमें उदय २९ एवं सत्त्व ९२ व ९० प्रकृतिका है। मिथ्यादृष्टि तिर्यञ्चके द्वीन्द्रिय, त्रीन्द्रिय, चतुरिन्द्रिय और पञ्चेन्द्रियतिर्यञ्च व मनुष्यसहित २९ प्रकृतिक धर्म उदय २१-१४-२९..-२६-२५:२८-२९-३० व ३१ प्रकृतिका एवं सत्त्व ९२-९०-८८-८४ व ८२ प्रकृतिका है, सासादनगुणस्थानके पञ्चेन्द्रियतिर्यञ्च व मनुष्यसहित २९ प्रकृतिके बन्धमें उदय २१-२४-२६-३० व ३१ प्रकृतिका तथा सत्त्व ९० प्रकृतिका है; यहाँ २५-२७२८ व २९ प्रकृतिक उदय नहीं पाया जाता है। मिश्र-असंयत और देशसंयत इन तीन गुणस्थानोंमें २९ प्रकृतिक बन्ध नहीं है, क्योंकि तिर्यञ्च व मनुष्यगतिकी बन्धव्युच्छित्ति सासादनगुणस्थानमें ही हो जाती है। मिथ्यादृष्टि मनुष्यके द्वीन्द्रिय, त्रीन्द्रिय, चतुरिन्द्रिय, पञ्चेन्द्रियतिर्यञ्च या मनुष्यगतिसहित २९ प्रकृतिक बन्धमें २१-२६-२८-२९ व ३० प्रकृतिका उदय और ९२-९०-८८ व ८४ प्रकृतिका सत्त्व है। यहाँ तेजकाय, वायुकाय की उत्पत्ति मनुष्यों में नहीं होती, इससे ८२ का सत्त्व नहीं कहा। जिसने पूर्वमें नरकायुका बन्ध कर लिया है ऐसे जीवके तीर्थङ्करप्रकृतिके बन्धसहित नरकगतिको जाते समय मिथ्यात्वावस्थामें मनुष्यगतिसहित २९ प्रकृतिके बन्धौ २१-२५-२७-२८ व २९ प्रकृतिक उदयसहित ९१ प्रकृतिका सत्त्व जानना, सासादनगुणस्थानमें पञ्चेन्द्रियतिर्यञ्च अथवा मनुष्यसहित २९ प्रकृतिकबन्धमें २१-२६ व ३० प्रकृतिक उदयसहित ९० प्रकृतिका सत्त्व है, मिश्रगुणस्थानमें २९ प्रकृतिक बन्ध नहीं है। असंयतगुणस्थानमें देव और तीर्थङ्करसहित २९ प्रकृतिक बन्धमें २१-२६-२८-२९ व ३० प्रकृतिके उदयसहित सत्त्व ९३ और ९१ प्रकृतिका है, देशसंयतगुणस्थानमें इसीप्रकार २९ प्रकृतिक बन्धमें ३० प्रकृतिका उदय एवं ९३ व ९१ प्रकृतिका सत्त्व है, प्रमत्तगुणस्थानके इसी २९ प्रकृतिक बन्धस्थानके साथ २५-२७-२८-२९ व ३० प्रकृतिक उदय और ९३ व ९१ प्रकृतिक सत्त्व है, अप्रमत्त और अपूर्वकरणगुणस्थानमें पूर्वोक्त २९ प्रकृतिक बन्धमें उदय ३० प्रकृतिका एवं सत्त्व ९३ व ९१ प्रकृति का जानना। देवगति भवनत्रिकसे सहस्रारस्वर्गके कल्पवासीदेवोंतक मिथ्यात्वगुणस्थानमें सझीपञ्चेन्द्रियपर्याप्ततिर्यञ्च या मनुष्यसहित २९ प्रकृतिक बन्धमें २१-२५-२७-२८ व २९ प्रकृतिका उदय तथा ९२ व ९० प्रकृतिका सत्त्व है। देव सासादनगुणस्थानमें पूर्ववत् २९ प्रकृतिक बन्धौ २१-२५